Tuesday, November 12, 2024
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Economic Growth: GDP में हो रही है लगातार वृद्धि, लेकिन दिहाड़ी मजदूरों की आय में कमी

Economic Growth: देश में अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज हो रही है, GDP में वृद्धि हो रही है और उद्योगों से लेकर सेवा क्षेत्र तक में विस्तार देखने को मिल रहा है। सरकारों के दावों के अनुसार, यह आर्थिक उछाल रोजगार के नए अवसर और बेहतर आय का मार्ग प्रशस्त कर रही है। लेकिन हकीकत का सामना करें तो यह लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, जिनके मेहनत के बल पर यह प्रगति संभव हो रही है। विशेष रूप से खेतिहर और दिहाड़ी मजदूर वर्ग में, जिनकी मेहनत से देश का निर्माण होता है, उनकी आय में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई है। वास्तव में, महंगाई के बढ़ते स्तर के मुकाबले उनकी दिहाड़ी आज ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ के समान हो गई है।

1. दिहाड़ी मजदूरों की आय में कमी

दिहाड़ी मजदूर देश के निर्माण के मूल स्तंभ हैं। वे हर दिन कठिन मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें उनकी मेहनत का उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता। पिछले कुछ वर्षों में दिहाड़ी मजदूरों की आय में या तो बहुत मामूली वृद्धि हुई है या फिर स्थिर रही है। जबकि, महंगाई तेजी से बढ़ रही है, खासकर खाद्य पदार्थों, पेट्रोल, डीजल, गैस और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में। इसका सीधा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है, क्योंकि उनकी आय का अधिकांश हिस्सा दैनिक आवश्यकताओं पर खर्च हो जाता है, और बचत का सवाल ही नहीं उठता।

2. महंगाई का बोझ और जीवन स्तर

महंगाई के कारण दिहाड़ी मजदूरों का जीवन स्तर और भी बदतर हो गया है। जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के चलते उनका खर्च बढ़ता जा रहा है, जबकि आय स्थिर या कम हो रही है। महंगाई में यह वृद्धि उनकी दिहाड़ी के मुकाबले बहुत अधिक है, जिसके कारण वे न तो अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर पा रहे हैं और न ही अपनी स्वास्थ्य सेवाओं पर। उनके पास इतनी आय नहीं है कि वे उचित आवास की व्यवस्था कर सकें, जिससे उनकी स्थिति और भी दयनीय होती जा रही है।

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3. खेतिहर मजदूरों की खराब स्थिति

खेतिहर मजदूरों की स्थिति भी चिंताजनक है। कृषि क्षेत्र में काम करने वाले इन मजदूरों की दिहाड़ी बहुत ही कम है। कृषि उत्पादन में बेशक वृद्धि हुई है, लेकिन इसका सीधा लाभ खेतिहर मजदूरों तक नहीं पहुंचता। इन मजदूरों की आय में वृद्धि की बजाय गिरावट आई है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ये मजदूर मजबूरी में बहुत ही कम मजदूरी पर काम कर रहे हैं। अक्सर इन्हें अपने जीवन-यापन के लिए कर्ज लेना पड़ता है, जिसे चुकाना उनके लिए मुश्किल होता है।

4. सरकारी योजनाओं का मजदूरों पर सीमित असर

सरकार ने मजदूरों की स्थिति सुधारने के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत रोजगार की गारंटी देना। लेकिन इन योजनाओं का लाभ उन तक पूरी तरह नहीं पहुँच पाता। कई बार इन योजनाओं में भ्रष्टाचार और व्यवस्थागत खामियों के कारण मजदूरों को उनकी मजदूरी समय पर नहीं मिलती। इसके अलावा, जो मजदूरी तय की गई है वह भी महंगाई को ध्यान में रखते हुए पर्याप्त नहीं है। सरकारी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य मजदूरों को रोजगार प्रदान करना और उनकी आय बढ़ाना था, लेकिन इसका लाभ सीमित ही रहा है।

5. COVID-19 महामारी और उसका असर

कोविड-19 महामारी ने मजदूरों की स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। लॉकडाउन के कारण लाखों मजदूरों को अपने गाँव लौटना पड़ा, और रोजगार के अवसरों में कमी आई। जब उद्योग दोबारा खुले, तब भी पहले जैसी स्थिति बहाल नहीं हो पाई। कई मजदूर अभी भी रोजगार की तलाश में हैं, और जिन्हें काम मिल भी रहा है उनकी दिहाड़ी पहले के मुकाबले बहुत कम हो गई है। इस आर्थिक संकट ने मजदूर वर्ग को और भी अधिक असुरक्षित बना दिया है, और उनके जीवन स्तर में गिरावट आई है।

6. आर्थिक असमानता और श्रमिक वर्ग

आर्थिक असमानता का विस्तार भी मजदूरों की इस स्थिति का एक प्रमुख कारण है। देश में आर्थिक वृद्धि का लाभ बड़े उद्योगों, संपन्न वर्ग और शहरी क्षेत्रों में अधिक पहुंच रहा है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों और श्रमिक वर्ग इससे वंचित हैं। उच्च वेतन और लाभ प्राप्त करने वालों की संख्या सीमित है, जबकि निचले स्तर के श्रमिकों की आय बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही। इसका नतीजा यह है कि आर्थिक असमानता में और वृद्धि हो रही है, जो समाज के लिए खतरनाक संकेत है।

7. समाधान और सुधार की आवश्यकता

देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए यह जरूरी है कि श्रमिक वर्ग को भी इसका लाभ मिले। इसके लिए सरकार को मजदूरी दर में सुधार करना चाहिए और महंगाई के अनुसार उन्हें उचित वेतन प्रदान करना चाहिए। कृषि क्षेत्र में सुधार के साथ-साथ खेतिहर मजदूरों की आय में वृद्धि के लिए भी कदम उठाने होंगे। इसके अलावा, श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि उन्हें जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधन मिल सकें।

देश की आर्थिक प्रगति का वास्तविक लाभ तब तक संपूर्ण समाज तक नहीं पहुंच सकता जब तक दिहाड़ी मजदूरों और खेतिहर मजदूरों को उनकी मेहनत के अनुसार न्यायपूर्ण आय नहीं दी जाती। केवल आंकड़ों में अर्थव्यवस्था की वृद्धि का दिखावा करने से वास्तविक विकास संभव नहीं है। जरूरत है कि सरकार, उद्योग और समाज एक साथ मिलकर ऐसी नीतियाँ और योजनाएँ बनाएं, जिससे सबसे निचले तबके तक आर्थिक प्रगति का लाभ पहुंच सके।

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