Eco-Friendly Diwali : 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद जब भगवन श्री राम वापस अयोध्या लौटे थे तो तब अयोध्यावासियों ने लाखों दीप जलाकर उनका स्वागत किया था, जो परंपरा आज भी कायम है। दिवाली के दिन सभी घर दीयों से जगमग-जगमग रहते हैं व इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि साफ-सुथरे घर में मां लक्ष्मी स्वयं आती हैं। हालांकि, अब बाजार में एक से बढ़कर एक रंग-बिरंगे बल्ब और साज-सजावट का सामान उपलब्ध है लेकिन मिट्टी के दीयों की चमक के आगे सब फीका हैं। मिट्टी के दीयों को सबसे शुद्ध माना जाता है और त्योहार की परंपरा के अनुरूप मिट्टी के दीये ही जलाना अच्छा होता हैं।
दीयों का धार्मिक महत्व
दिवाली में अब कुछ ही दिन रह गए हैं। गाँवों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन-रात काम कर रहे हैं। बता दें कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में मिट्टी के दीपक जलाने से सुख, समृद्धि और शांति का वास होता हैं। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है और मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है व तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है एवं शनि को न्याय और भाग्य का देवता कहा जाता है। ऐसे में मिट्टी का दीपक जलाने से घर में मंगल और शनि की कृपा होती है।
इस बार मनाएं इको-फ्रेंडली दिवाली
दिवाली के मौके पर दीयों का अलग ही महत्व है। बता दें कि मिट्टी से निर्मित दिये, मूर्तियाँ व खिलौने पूरी तरह इको-फ्रेंडली होते हैं। इनको बनाने में व रंगाई एवं पकाने में किसी भी प्रकार का केमिकल प्रयोग नहीं किया जाता है और इसलिए दीये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।