Ekadashi Vrat Niyam : हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और शुभ-अशुभ का बहुत महत्त्व हैं। ज्यादातर हिन्दू परिवार में एकादशी का व्रत रखा जाता है। साथ ही विशेष उपवास के विशेष नियम का भी पालन किया जाता है। मान्यता के अनुसार, कृष्ण जी (Krishan Ji) ने भी एकादशी के व्रत को सर्वोपरि व सर्वश्रेष्ठ माना है। 11वीं तिथि को एकादशी कहा जाता है, जो एक माह में दो बार आती हैं। भगवान कृष्ण की विशेष कृपा पाने के लिए कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन व्रत रखा जाता है।
सांसारिक सुखों के भोग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी एकादशी (Ekadashi Vrat Niyam) का व्रत रखा जाता है। इस व्रत में अन्न का सेवन तो वर्जित होता ही है। साथ ही चावल (Rice) का सेवन तो करना ही नहीं चाहिए। एकादशी के दिन, जो लोग व्रत नहीं रखते उन्हें भी चावल नहीं खाना चाहिए। आज हम आपको इसी की एक कथा (Ekadashi Vrat Niyam) के बारें में बताएंगे।
जानिए क्या है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, माता भागवती के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने ही शरीर का त्याग कर दिया था। त्याद करते ही उनके शरीर के अंश धरती में समा गए थे। माना जाता है कि महर्षि के अंश पृथ्वी में समाने के बाद धरती से चावल के पौधे की उत्पत्ति हुई थी। इसी वजह से चावल को पौधे की जगह जीव माना जाता हैं।
बता दें कि जिस दिन महर्षि मेधा ने अपने शरीर को त्यागा था, उसी दिन एकादशी (Ekadashi Vrat Niyam) थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करा जाता है। अगर इस दिन चावल खाते है तो उसे हिन्दू मान्यता के अनुसार, अपराध माना जाता हैं। साथ ही ये भी कहा जाता है कि इस दिन (Ekadashi Vrat Niyam) चावल खाना, महर्षि मेधा के रक्त व मांस खाने के बराबर है। इसके अलावा अगले जन्म में व्यक्ति का जन्म सांप (Snake) के रूप में होता है।