Recently updated on July 24th, 2024 at 04:51 pm
Depression : आज के युग में डिप्रेशन इतना कॉमन हो गया है की बच्चे से लेकर बूढ़े तक हर कोई इसकी गिरफ्त में आ रहा है। भारत देश में डिप्रेशन का कहर इतना बढ़ गया है की नौबत आत्महत्या तक पहुंच गयी है। इस चिंता के विषय को देखते हुए विद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रम में कौन्सेलोर्स और स्पेशल एडुकेटर्स रख लिए है। इसी बच्चो को ये भी सिखाया जा रहा है की अकेलापन महसूस हो तो कौंसलर्स के सामने अपनी बात ज़रूर रखे। डिप्रेशन एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो व्यक्ति की भावनाओं, विचारों और व्यवहार पर गहरा असर डालती है। बदले विचारो एवं व्यव्हार की वजह से इंसान दुखी महसूस करता है। इस उदासी के कारण काम में मन न लगना लाज़मी है।
भारत में डिप्रेशन सबसे कॉमन मेन्टल इलनेस है और ये ज़्यादातर 15 से 24 साल के युवाओ में देखा जा रहा है। डिप्रेशन के अन्य कारण देखने को मिलते है जैसे की पढ़ाई का प्रेशर, दोस्त या अन्य रिश्तो में अन बन। डिप्रेशन के लक्षणों में शामिल हो सकते हैं, उदासी, अकेलापन, काम में दिल न लगना, नींद की समस्या, कम भूक लगना और बुरे विचार।आज के समय में हमें समाज में डिप्रेशन के संकेतों को पहचानने के लिए जागरूकता और शिक्षा को महत्वपूर्ण मानना चाहिए। लोगो को इस बात का एहसास होना आवश्यक है की डिप्रेशन भी एक दिमाग की बीमारी है। जिस प्रकार शरीर बीमार हो सकता है उसी प्रकार दिमाग भी बीमार हो सकता। हर भारतीय को इस मुद्दे पर खुलकर बात करने से बिलकुल नहीं झिझकना चाहिए।
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भारत जवानो का देश कहलाता है। अगर युवा पीढ़ी ही डिप्रेशन से घिरी रहेगी तो देश में प्रोग्रेस कैसे होगी ? सरकार सामाजिक संगठनों, और स्वास्थ्य संस्थानों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करने के लिए अन्य फैसिलिटीज़ को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इसी के साथ परिवार वालो को भी ये समझना होगा की स्वास्थ्य से ऊपर कुछ नहीं है। माँ बाप और बच्चो के बिच कम्युनिकेशन गैप बिलकुल नहीं होना चाहिए। आखिरकार, हमें साथ मिलकर समाज में मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने और डिप्रेशन के मामलों को कम करने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए । एक स्वस्थ और समृद्ध समाज के लिए हमे डिप्रेशन से लड़ना होगा। डिप्रेशन का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव गंभीर हो सकता है, इसलिए समय रहते इसे पहचानना और इलाज करना महत्वपूर्ण है।