Saturday, July 27, 2024
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दिल्ली एमसीडी चुनाव : इस जाति को सर्वे में शामिल कराने की उठी मांग, डीयू के प्रोफेसर ने कही ये बात

राजधानी दिल्ली में 4 दिसम्बर को नगर निगम के चुनाव होने तय है। इन चुनाव में हर राजनैतिक पार्टी जातियों का सर्वे कराती है कि उस क्षेत्र में किस जाति का बाहुल्य ज्यादा है और उस जाति के वोटरों की निर्णायक भूमिका को दर्शाती है। कुछ पार्टियां तो जातिगत समीकरण को देखकर ही उम्मीदवार खड़े करती है ताकि उनकी जीत सुनिश्चित हो। एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है और देखने में भी आया है कि दिल्ली के अधिकतर गांवों में अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाली जुलाहा , कबीरपंथी जुलाहा जाति की संख्या अनुसूचित जातियों की उप -जातियों में सबसे अधिक हैं। मगर उनकी संख्या कभी नहीं बताई जाती । जबकि अनुसूचित जातियों में अन्य जातियों की संख्या का उल्लेख करते हुए यह बताया जाता है कि हार जीत का फैसला उक्त जातियां करेंगी।

 

दिल्ली में अच्छी संख्या में हैं इस जाति के लोग

बता दें कि जब भी निगम चुनाव, विधानसभा या लोकसभा चुनाव में समाचार पत्रों या चुनाव एजेंसियों द्वारा आरक्षित सीटों पर जातीय समीकरण संबंधी सर्वे कराकर सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है तो उसमें अनुसूचित जाति की अन्य उप-जातियों का जिक्र तो कर दिया जाता है। लेकिन कभी भी सर्वे के माध्यम से जुलाहा , कबीरपंथी जुलाहा जाति का नाम नहीं दर्शाया जाता। जबकि इस जाति की संख्या दिल्ली में लगभग बीस लाख है। यह जाति दिल्ली देहात के अलीपुर ब्लॉक , बवाना , कंझावला ब्लॉक , नांगलोई ब्लॉक , नजफगढ़ ब्लॉक , महरौली ब्लॉक के अलावा जमनापार में नंदनगरी, लक्ष्मी नगर, भजन पुरा आदि क्षेत्रों में कोरी, जुलाहा, कबीरपंथी जुलाहा समाज के लोग भारी संख्या में रहते हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री अरबिंदो कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हंसराज सुमन ने समाचार पत्रों के संपादकों , न्यूज एजेंसियों के रिपोर्टर व न्यूज चैनलों के निदेशकों से मांग की है कि जब भी दिल्ली देहात में दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आरक्षित सीटों पर सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है तो जुलाहा , कबीरपंथी जुलाहा जाति की संख्या को भी दर्शाया जाए ताकि दिल्ली सरकार व दिल्ली वासियों को इनकी वास्तविक संख्या का पता चल सकें।

 

निगम चुनाव के सर्व में शामिल करने की मांग

उन्होंने कहा कि दिल्ली देहात में सर्वाधिक जनसंख्या में रहने वाली जुलाहा जाति को सर्वे में कभी भी शामिल नहीं किया जाता, जबकि इनकी संख्या लगभग बीस लाख है और बाहरी दिल्ली के अधिकांश गाँवों में रहती है। डॉ. सुमन ने यह भी बताया है कि जुलाहा जाति के लोग प्रतिबंधित जाति के नाम से पहले अपने जाति प्रमाण पत्र बनवाते थे, लेकिन अब वे बनने बंद हो गए हैं। वे अपनी जुलाहा जाति से जाति प्रमाण पत्र बनवाना चाहते है। वह तभी संभव है जब उनके जुलाहा , कबीरपंथी जुलाहा से जाति प्रमाण पत्र बने। उन्होंने पुनः आरक्षित सीटों का नगर निगम चुनाव के मद्देनजर सर्वे होता है तो जुलाहा , कबीरपंथी जुलाहा जाति के लोगों की वास्तविक संख्या अवश्य जारी करें।

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