Delhi and Uttarakhand High Court: केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में दो अधिवक्ताओं और उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक न्यायिक अधिकारी को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अधिसूचना जारी की। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इन नियुक्तियों की घोषणा की।
दिल्ली उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अजय दिगपॉल और हरीश वैद्यनाथन शंकर को न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। वहीं, उत्तराखंड उच्च न्यायालय में न्यायिक अधिकारी आशीष नैथानी को न्यायाधीश बनाया गया है। यह नियुक्तियां उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिशों पर आधारित हैं।
कॉलेजियम की सिफारिशें
पिछले वर्ष अगस्त में सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने एक प्रस्ताव में कहा था कि अधिवक्ता अजय दिगपॉल, हरीश वैद्यनाथन शंकर, और सुश्री श्वेताश्री मजूमदार को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाए। कॉलेजियम ने इस प्रक्रिया में उनकी वरिष्ठता तय करने की बात भी कही थी।
अजय दिगपॉल
कॉलेजियम ने दिगपॉल के मामले में कहा कि न्याय विभाग द्वारा दिए गए इनपुट्स से संकेत मिलता है कि उनकी पेशेवर क्षमता उत्कृष्ट है और उनकी ईमानदारी पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है।
हरीश वैद्यनाथन शंकर
हरीश वैद्यनाथन शंकर के मामले में कॉलेजियम ने अपने सलाहकार न्यायाधीश की सकारात्मक राय का हवाला देते हुए कहा कि उनकी पेशेवर क्षमता और ईमानदारी भी उच्च स्तर की है।
श्वेताश्री मजूमदार
हालांकि, सुश्री श्वेताश्री मजूमदार की नियुक्ति की सिफारिश अभी भी सरकार के पास लंबित है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में नियुक्ति
दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायिक अधिकारी आशीष नैथानी के नाम की सिफारिश की थी। नैथानी को उनकी न्यायिक सेवा में उत्कृष्ट प्रदर्शन और अनुभव के आधार पर यह पद दिया गया है।
प्रक्रिया और महत्व
यह नियुक्तियां भारतीय न्यायपालिका के सुचारु संचालन के लिए महत्वपूर्ण हैं। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी लंबे समय से एक चुनौती रही है, और इन नियुक्तियों से मामलों के त्वरित निपटारे में मदद मिलेगी।
न्यायपालिका में नियुक्तियों की प्रक्रिया में कॉलेजियम की भूमिका अहम होती है, जो न्यायाधीशों के प्रदर्शन, ईमानदारी और क्षमता का गहन अध्ययन करती है। केंद्र सरकार द्वारा इन सिफारिशों को स्वीकृति देना इस प्रक्रिया का अंतिम चरण है।
इन नियुक्तियों से न केवल दिल्ली और उत्तराखंड उच्च न्यायालयों की न्यायिक प्रणाली को मजबूती मिलेगी, बल्कि यह न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास बनाए रखने में भी सहायक होगा।