Delhi Air Quality: दिल्ली की वायु गुणवत्ता में लगातार गिरावट ने एक बार फिर से प्रदूषण के संकट को उजागर कर दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अलर्ट के बाद, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने आपातकालीन बैठक आयोजित कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के दूसरे चरण (Grap – 2) को मंगलवार से लागू कर दिया है । इसके तहत वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 11 सूत्रीय एक्शन प्लान तैयार किया गया है, जिसमें डीजल जनरेटरों पर प्रतिबंध, पार्किंग शुल्क में वृद्धि और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की बढ़ोतरी जैसे प्रावधान शामिल हैं।
दिल्ली का गंभीर प्रदूषण संकट
सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की वायु गुणवत्ता 300 के पार पहुंच गई है, जो ‘बेहद खराब’ श्रेणी में आती है। सोमवार को दिल्ली का एक्यूआई 310 था, और मंगलवार को सुबह 9 बजे यह 317 पर पहुंच गया। इस प्रकार, दिल्ली सोमवार को देश के 238 शहरों में सबसे प्रदूषित शहर बन गया। पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली में सर्दियों के मौसम में वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी जा रही है, जो मुख्यतः वाहनों के धुएं, निर्माण कार्यों, औद्योगिक प्रदूषण, और पराली जलाने से उत्पन्न होती है।
ग्रेप-2: प्रदूषण नियंत्रण के उपाय
वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिए सीएक्यूएम ने ग्रेप-2 के तहत कई कठोर कदम उठाए हैं। सबसे महत्वपूर्ण कदमों में आवासीय, व्यावसायिक और औद्योगिक इकाइयों में डीजल जनरेटरों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है। आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर, इन जनरेटरों का उपयोग पूरी तरह से निषिद्ध कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त, सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या कम करने के उद्देश्य से पार्किंग शुल्क बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।
सार्वजनिक परिवहन की क्षमता को भी बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं, जिसमें सीएनजी और इलेक्ट्रिक बसों के फेरे बढ़ाने और मेट्रो की सेवा में विस्तार शामिल है। इससे उम्मीद की जाती है कि लोग निजी वाहनों का इस्तेमाल कम करेंगे और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग बढ़ाएंगे, जिससे वाहनों से होने वाले प्रदूषण में कमी आएगी।
दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों की भूमिका
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रोपिकल मेटेरोलॉजी (आईआईटीएम), पुणे के डाटा के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाले धुएं की हिस्सेदारी 10.96% है। यह हिस्सा दिल्ली के कुल प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण कारक है, खासकर तब जब तापमान गिरता है और हवा की गति धीमी हो जाती है।
दिल्ली के अलावा, एनसीआर के अन्य शहरों में भी यही स्थिति देखी जा रही है। प्रदूषण का यह स्तर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और उन लोगों के लिए जो श्वसन संबंधी बीमारियों से ग्रस्त हैं।
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पराली जलाने का प्रभाव
दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण में पराली जलाने की भूमिका भी उल्लेखनीय है। दिल्ली के आस-पास के राज्यों, खासकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। सोमवार को पंजाब में पराली जलाने की 65 घटनाएं, हरियाणा में 2 और उत्तर प्रदेश में 25 घटनाएं दर्ज की गईं। पराली जलाने से उत्पन्न धुआं हवा की गुणवत्ता को और खराब कर देता है, खासकर तब जब हवा की गति कम होती है और प्रदूषक तत्व वायुमंडल में फंस जाते हैं।
आईआईटीएम के अनुसार, 23 अक्टूबर को पराली जलाने से उत्पन्न धुएं की हिस्सेदारी बढ़कर 11.16% हो गई और 24 अक्टूबर को यह 15.12% तक पहुंचने की आशंका है। यह आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि पराली जलाने का प्रभाव दिल्ली के प्रदूषण संकट को और गंभीर बना रहा है।