CM Yogi Adityanth: योगी आदित्यनाथ का हालिया बयान, “बंटोगे तो कटोगे, एक रहेगो तो नेक रहोगे, सुरक्षित रहोगे,” न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। यह बयान उन्होंने आगरा में एक सभा के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने बांग्लादेश का जिक्र करते हुए सांप्रदायिक एकता पर जोर दिया। हालांकि, उनके इस बयान को लेकर कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
बयान का संदर्भ और असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान बांग्लादेश के संदर्भ में दिया गया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि इसका वास्तविक लक्ष्य उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति थी। योगी आदित्यनाथ ने धर्म के आधार पर एकजुटता की अपील की, जोकि यूपी में जाति की राजनीति के बढ़ते प्रभाव के बीच एक नया मोड़ ला सकती है।
इस बयान पर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ बांग्लादेश के साथ तुलना कर भारत का अपमान कर रहे हैं। ओवैसी का यह बयान इस बात का संकेत है कि योगी के इस बयान का राजनीतिक प्रभाव कितना गहरा हो सकता है।
शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी और इसका मतलब | CM Yogi Adityanth
इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी भी चर्चा में है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व का चुप रहना एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। पार्टी का ध्यान जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है, और वह नहीं चाहती कि योगी के इस बयान का वहां के मुस्लिम वोटरों पर नकारात्मक प्रभाव पड़े।
बीजेपी के गठबंधन में जेडीयू और लोजपा जैसे दल शामिल हैं, जिनके वोट बैंक में मुस्लिम समुदाय की अहम भूमिका है। जेडीयू का असम में नमाज की छुट्टी रद्द करने पर विरोध भी इसी का एक उदाहरण है। इस परिस्थिति में पार्टी नेतृत्व ने योगी के बयान पर किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से परहेज किया है, ताकि गठबंधन में सहयोगियों के साथ तालमेल बना रहे।
योगी को फ्री हैंड ? | CM Yogi Adityanth
लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी के रुख में भी एक बदलाव देखने को मिला है। सीएम योगी आदित्यनाथ के आक्रामक हिंदुत्व पर आधारित बयान से यह साफ है कि पार्टी ने उन्हें एक बार फिर से फ्री हैंड दे दिया है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, और बीजेपी इस बार कोई भी ढील बरतने के मूड में नहीं दिख रही है।
पार्टी के हाल के कदमों से यह साफ हो गया है कि वह अपने फायरब्रांड नेताओं को इस बार खुला मैदान दे रही है। इससे पहले कंगना रनौत के किसान आंदोलन पर दिए गए बयान के बाद पार्टी ने उन्हें चेताया था, लेकिन योगी के मामले में पार्टी नेतृत्व ने चुप्पी साध ली है।
बयान के राजनीतिक मायने
योगी आदित्यनाथ का यह बयान जाति की राजनीति के बीच धर्म के आधार पर वोट बैंक को एकजुट करने का एक प्रयास माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिगत विभाजन के कारण बीजेपी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। योगी का यह बयान उस विभाजन को खत्म करने और हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने का प्रयास माना जा रहा है।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के इस बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि योगी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन उन्हें कम से कम पीएम का रोल नहीं निभाना चाहिए। अखिलेश ने यह भी कहा कि यह पहली बार नहीं है जब योगी ने इस तरह का बयान दिया है।
दूसरी ओर, असदुद्दीन ओवैसी ने इस बयान को भारत का अपमान बताया और कहा कि योगी आदित्यनाथ अपनी कुर्सी बचाने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं। विपक्ष का मानना है कि योगी का यह बयान उनकी कमजोर राजनीतिक स्थिति को दर्शाता है और वह इस प्रकार के विवादित बयान देकर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहते हैं।
बीजेपी की रणनीति और भविष्य
बीजेपी की रणनीति इस समय योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद और अधिक स्पष्ट होती जा रही है। पार्टी ने योगी को एक बार फिर से फ्री हैंड दे दिया है, और वह अपने आक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यह रणनीति उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनावों और अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।
हालांकि, पार्टी नेतृत्व की चुप्पी यह संकेत देती है कि वह इस बयान के राजनीतिक निहितार्थ को भलीभांति समझता है और इसलिए किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से परहेज कर रहा है।
योगी आदित्यनाथ का यह बयान उनके आक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति में बीजेपी को एक नया मोड़ देना है। हालांकि, इस बयान पर शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी और विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि यह बयान सिर्फ एक चुनावी रणनीति नहीं है, बल्कि इसका असर दूरगामी हो सकता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्यनाथ का यह कदम आगामी चुनावों में बीजेपी की दिशा और दशा को प्रभावित कर सकता है।