Child Marriage: बाल विवाह का मतलब है 18 साल से कम उम्र के किसी बच्चे की शादी किसी वयस्क या दूसरे बच्चे से कर देना। यह सामाजिक समस्या बच्चों के अधिकारों का हनन करती है और उनके भविष्य को अंधकारमय बनाती है। कई देशों में इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाई जा रही है, और 2030 तक इसे पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य है।
बाल विवाह की सबसे बड़ी बाधा बच्चों की शिक्षा में देखी जाती है। खासतौर पर लड़कियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। शादी के बाद बहुत कम लड़कियां अपनी पढ़ाई जारी रख पाती हैं, जिससे उनका विकास रुक जाता है और वे जीवन में स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पातीं। यह केवल लड़कियों का मसला नहीं है, बल्कि कई लड़कों की भी शादी कम उम्र में कर दी जाती है, जो उनके मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा डालता है।
दुनिया में बाल विवाह की स्थिति
यूनिसेफ की 2023 की “एंडिंग चाइल्ड मैरिज” रिपोर्ट के अनुसार, बाल विवाह की दर सबसे ज्यादा बांग्लादेश (51%) में है। इसके बाद नेपाल (33%), अफगानिस्तान (28%), भूटान (26%) और भारत (23%) में हैं। दक्षिण एशिया में भारत पांचवें स्थान पर है, जहां दुनियाभर के बाल विवाह के एक तिहाई मामले होते हैं। भारत में लगभग चार में से एक युवती की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले कर दी जाती है। हालाँकि, पिछले 15 सालों में इसमें तेजी से कमी आई है। 2001 में 49% लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले होती थी, जो 2021 में घटकर 23% रह गई।
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Child Marriage भारत में बाल विवाह की स्थिति | Child Marriage
भारत में विभिन्न राज्यों में बाल विवाह की स्थिति अलग-अलग है। आधे से ज्यादा मामले पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से आते हैं। उत्तर प्रदेश में संख्या सबसे ज्यादा है, जबकि प्रतिशत के हिसाब से पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा में बाल विवाह के मामले सबसे अधिक (40%) हैं। दूसरी ओर, लक्षद्वीप में बाल विवाह की दर सबसे कम (1%) है।
किन लड़कियों को है सबसे ज्यादा खतरा ? Child Marriage
बाल विवाह (Child Marriage) की समस्या मुख्य रूप से गरीब और अशिक्षित परिवारों में देखने को मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40% बाल विवाह गरीब परिवारों में होते हैं, और जिन लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया है, उनमें से 48% की शादी कम उम्र में ही हो जाती है।
शिक्षा बाल विवाह को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। शिक्षित लड़कियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं और बाल विवाह का विरोध कर सकती हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के मामले अधिक हैं, जहां जागरूकता की कमी और सामाजिक दबाव अधिक होता है।
कम उम्र में शादी, कम उम्र में मां बनने की समस्या
जिन लड़कियों की शादी बचपन में हो जाती है, वे किशोरावस्था पूरी होने से पहले ही मां बन जाती हैं, जो उनके स्वास्थ्य और भविष्य के लिए हानिकारक है। कम उम्र में मां बनने के कारण उन्हें और उनके बच्चों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आंकड़ों के अनुसार, जिन लड़कियों की शादी 15 साल (Child Marriage) से पहले होती है, उनमें से 84% और जिनकी शादी 15-18 साल की उम्र में होती है, उनमें से 77% लड़कियां 18 साल से पहले ही मां बन जाती हैं। कम उम्र में मां बनने से उनकी पढ़ाई छूट जाती है और वे गरीबी के चक्र में फंस जाती हैं।
बाल विवाह के आंकड़े: कैसे किए गए सर्वेक्षण
बाल विवाह के आंकड़े मुख्यतः राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के माध्यम से जुटाए गए हैं, जो 1992-93 से 2019-21 के बीच किया गया। इस सर्वेक्षण में लड़कियों और महिलाओं से उनकी शादी की उम्र, पढ़ाई का स्तर और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी जुटाई गई। इन आंकड़ों के विश्लेषण से बाल विवाह की वास्तविक स्थिति का आकलन किया गया।
बाल विवाह को रोकने के लिए प्रयास
बाल विवाह को रोकने के लिए 2016 में यूनिसेफ और UNFPA ने मिलकर एक ग्लोबल प्रोग्राम शुरू किया, जिसका उद्देश्य बाल विवाह के खतरे से जूझ रही या प्रभावित लड़कियों को सशक्त बनाना है। इस प्रोग्राम के तहत 2.1 करोड़ से ज्यादा किशोरियों को जीवन के आवश्यक कौशल, यौन शिक्षा, और स्कूल जाने के लिए मदद दी गई है। साथ ही 35.3 करोड़ से ज्यादा लोगों को बाल विवाह के खिलाफ जागरूक किया गया है।
बाल विवाह (Child Marriage) एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो बच्चों के अधिकारों का हनन करती है और उनके भविष्य पर बुरा प्रभाव डालती है। शिक्षा, जागरूकता और कड़े कानूनों के माध्यम से ही इस प्रथा को समाप्त किया जा सकता है। बाल विवाह को खत्म करने का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब समाज का हर वर्ग इसके प्रति जागरूक और प्रतिबद्ध हो। भारत ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। 2030 तक बाल विवाह समाप्त करने का लक्ष्य तभी पूरा हो पाएगा, जब सभी मिलकर इस दिशा में काम करेंगे।