हमे संसार में आए दिन कई बाते सुनने को मिलती रहती है। रोज़ना सैंकडो चीजें हमारे आस-पास घटती है, लेकिन उनका आभास हम नहीं कर पाते है। इसका कारण है की हमारे शरीर में आभासी उपकरणों की अनुपस्थिती। अगर ध्वनि 20 हर्ट्ज – 20 किलो हर्ट्ज की सीमा से कम या ज्यादा हो जाती है तो हम उसको सुनने में असमर्थ होते है। इसी तरह से मनुष्य अपनी आंखो से केवल थोड़ा सा विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम को देख पाते हैं। यह दृश्यमान सीमा के अंदर आता है। दृश्यमान स्पेक्ट्रम विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम का हिस्सा है जो मानवीय आंखों के लिए दिखाई देता है। इसमें सात रंग मौजूद होते है। इसी प्रकार ब्रहमाण्ड में मौजूद सूरज के भी सात रंग होते है। लेकिन अगर आप सूर्य को दूर से देखते है तो वह पीले रंग का नज़र आता है। दरअसल सूर्य में कई रंगो को पाया जाता है। चलिए जानते है इस दिलचस्प रहस्य को।
सूरज को कैसे मिलते है ये रंग ?
सूर्य की किरणों में सात रंग मैजूद होते हैं। सूर्य के श्वेत प्रकाश में सात रंगों का मिश्रण होता है। ये रंग है बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। इन सातों प्रकाशीय रंगों में सबसे कम ऊष्मा बैंगनी रंग की और सबसे ज्यादा ऊष्मा लाल रंग की होती है। सूर्य द्वारा उत्सर्जित प्रकाश वास्तव में सफेद रंग का होता है, जो प्रकाश की सभी दृश्य आवृत्तियों का एक संयोजन है। लेकिन प्रिज्म का उपयोग करके, आप सूरज की रोशनी को अपने रंगों के पूर्ण स्पेक्ट्रम में तोड़ कर देख सकते हैं: लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, नीलिगो और बैंगनी; जिनमें से सभी इंद्रधनुष के रंग बनाते हैं।
क्योंं है आसमान का रंग नीला
उगते और डूबते सूर्य का रंग लाल दिखाई देता है क्योंकि प्रकाश के सात रंगों में लाल रंग का तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक और नीले रंग का सबसे कम होता है । इसी कारण अपवर्तन के समय नीला रंग सबसे अधिक बिखरता है और लाल रंग सबसे कम। सूर्य उगते और डूबते समय क्षितिज के सबसे निकट होता है और इसके प्रकाश की किरणें वातावरण में उपस्थित महीन जल कणों और विभिन्न गैसों के अन्दर से गुजरती हैं तो नीले रंग के अधिक बिखरने के कारण आकाश नीला दिखाई देता है और लाल रंग के कम बिखरने से सूर्य लाल दिखाई देता है।