Amit Shah: भारत में नक्सलवाद एक जटिल और दीर्घकालिक समस्या रही है, जिसने दशकों से देश के कई हिस्सों को हिंसा और अस्थिरता में झोंक रखा था। लेकिन अब इस समस्या का समाधान निकट है। देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में घोषणा की है कि मार्च 2026 तक भारत से नक्सलवाद का पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा। यह एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसे हासिल करने के लिए केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों ने व्यापक रणनीति तैयार की है।
वामपंथी उग्रवाद
नक्सलवाद की जड़ें 1960 के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी क्षेत्र में पड़ीं, जब किसानों के अधिकारों के लिए सशस्त्र विद्रोह शुरू हुआ। इस आंदोलन का उद्देश्य था सामाजिक असमानता और शोषण के खिलाफ लड़ाई, लेकिन यह धीरे-धीरे एक सशस्त्र उग्रवादी आंदोलन में बदल गया। नक्सली गुटों ने खासकर छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के वनाच्छादित क्षेत्रों में अपनी पैठ बना ली, जहां प्रशासन की पहुंच सीमित थी।
हालांकि, नक्सलवाद का असर पूरे देश में कम हो चुका है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे इलाकों में नक्सलियों का अभी भी गढ़ बना हुआ है। यही कारण है कि सरकार अब इन इलाकों में आखिरी और निर्णायक प्रहार करने के लिए पूरी ताकत झोंक चुकी है।
बस्तर में सुरक्षा बलों की तैनाती | Amit Shah
छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर क्षेत्र को नक्सलियों का आखिरी किला माना जाता है। इसे ध्वस्त करने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की अतिरिक्त चार बटालियनों को हाल ही में बस्तर में तैनात किया गया है। ये बटालियनें पहले झारखंड और बिहार में तैनात थीं, जहां नक्सलियों के खिलाफ काउंटर ऑपरेशन्स में बड़ी सफलताएं मिली थीं। अब इन सैनिकों को बस्तर भेजा गया है ताकि इस क्षेत्र में भी नक्सलवाद को खत्म किया जा सके।
झारखंड से तीन बटालियनें और बिहार से एक बटालियन दक्षिण बस्तर पहुंच चुकी हैं। इससे बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों की ताकत में भारी वृद्धि हुई है। इस कदम का उद्देश्य नक्सलियों के बचे हुए गढ़ों को पूरी तरह से ध्वस्त करना और इलाके में प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना है।
एफओबी: नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक रणनीति
नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान में एक अहम भूमिका सीआरपीएफ द्वारा स्थापित अग्रिम परिचालन बेस (एफओबी) की भी है। इन बेसों को उन क्षेत्रों में स्थापित किया गया है, जो पहले नक्सलियों के नियंत्रण में थे और जहां सरकार का कोई प्रभाव नहीं था। इन एफओबी की स्थापना से सुरक्षा बलों को न केवल माओवादियों के खिलाफ प्रभावी तरीके से ऑपरेशन चलाने में मदद मिलती है, बल्कि यह स्थानीय प्रशासन के लिए भी एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
2023 में अब तक बस्तर क्षेत्र में 10 नए एफओबी स्थापित किए जा चुके हैं, जिनकी मदद से इलाके में विकास और शांति स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इन बेसों के जरिए स्थानीय गांवों में सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना आसान हो गया है, जिससे वहां के लोगों का विश्वास शासन और सुरक्षा बलों में बढ़ा है।
वामपंथी उग्रवाद पर अंतिम प्रहार
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में छत्तीसगढ़ के रायपुर की यात्रा के दौरान इस बात की पुष्टि की कि नक्सलवाद के खात्मे के लिए सरकार ने 2026 तक का लक्ष्य तय किया है। उन्होंने यह भी बताया कि नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को और अधिक “मजबूत और निर्मम” बनाया जाएगा ताकि देश से इस समस्या का जड़ से सफाया हो सके।
नक्सलियों के खिलाफ चल रहे ऑपरेशन्स की सफलता के आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में नक्सली हिंसा में भारी गिरावट आई है। गृह मंत्रालय के अनुसार, 2010 की तुलना में 2023 तक वामपंथी हिंसा की घटनाओं में 73% की कमी आई है। इसके अलावा, सुरक्षा बलों और नागरिकों की मौतों में भी 86% की गिरावट दर्ज की गई है। यह आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि नक्सलवाद पर नियंत्रण पाया जा चुका है और अब अंतिम प्रहार की तैयारी की जा रही है।
नक्सलवाद के खात्मे के बाद का रोडमैप
नक्सलवाद के खात्मे के बाद सरकार का मुख्य ध्यान उन क्षेत्रों के पुनर्निर्माण और विकास पर होगा, जो लंबे समय तक इस समस्या से ग्रस्त रहे हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अभी भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। नक्सलियों के प्रभाव से बाहर आने के बाद अब इन इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, और अन्य बुनियादी ढांचों का विकास तेजी से हो रहा है।
सरकार की योजना है कि जब सुरक्षा बल नक्सलियों के प्रभाव से इन इलाकों को मुक्त करेंगे, तब वहां शासन-प्रशासन की व्यवस्था मजबूत की जाएगी ताकि लोग विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। इसके साथ ही, सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी पैदा किए जा रहे हैं, जिससे युवा वर्ग नक्सलवाद की ओर आकर्षित न हों और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके।
विकास और सामाजिक सुधारों की भूमिका
वामपंथी उग्रवाद का खात्मा केवल सैन्य बलों के दम पर संभव नहीं है, इसके लिए विकास और सामाजिक सुधार भी उतने ही जरूरी हैं। सीआरपीएफ और अन्य सुरक्षा बलों द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे ऑपरेशन्स के साथ-साथ, केंद्र और राज्य सरकारें इन इलाकों में विकास योजनाओं का भी तेजी से क्रियान्वयन कर रही हैं।
स्थानीय लोगों ने इन योजनाओं का लाभ उठाना शुरू कर दिया है, जिसके कारण नक्सलियों के प्रति उनका समर्थन कम होता जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के क्षेत्र में आई प्रगति के कारण नक्सली संगठनों को स्थानीय समर्थन की भारी कमी झेलनी पड़ रही है। इससे यह स्पष्ट है कि नक्सलवाद अब अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही इसका पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा।
देश में नक्सलवाद का सफाया अब तय हो चुका है। केंद्रीय सरकार द्वारा मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य महत्त्वपूर्ण है, और इसके लिए चलाए जा रहे सैन्य और विकासात्मक अभियानों से यह स्पष्ट है कि यह लक्ष्य समय से पहले ही पूरा हो सकता है। वामपंथी उग्रवाद अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है, और देश एक नए युग की ओर बढ़ रहा है, जहां शांति, विकास, और समृद्धि का वातावरण होगा।