Ambala Seat Haryana: अंबाला छावनी विधानसभा सीट (Ambala Vidhansabha Seat) हरियाणा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस सीट को प्रदेश की हॉट सीटों में गिना जाता है, और इसका इतिहास भी राजनीति में गहरी जड़ें रखता है। इस सीट से हरियाणा के पूर्व गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज छह बार विधायक रह चुके हैं, और उन्होंने लगातार तीन चुनाव जीतकर हैट-ट्रिक बनाई है। 2024 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में अनिल विज के सामने सातवीं बार अपनी साख बचाने की चुनौती है।
अनिल विज: अंबाला की राजनीति का अडिग चेहरा
अनिल विज, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख नेता हैं, का नाम अंबाला छावनी सीट से गहराई से जुड़ा हुआ है। उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत 1990 में तब हुई जब पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को राज्यसभा भेज दिया गया था और अनिल विज ने उपचुनाव में जीत हासिल कर पहली बार विधायक बने। इस सीट पर विज की पकड़ मजबूत रही है, और उन्होंने भाजपा के लिए इसे एक सुरक्षित सीट बना दिया है।
विज की राजनीतिक यात्रा में कई मोड़ आए हैं, लेकिन वह हमेशा अपनी दृढ़ता और सख्त रवैये के लिए जाने जाते हैं। मनोहर लाल खट्टर की सरकार में वह पहले स्वास्थ्य एवं खेल मंत्री बने और बाद में उन्हें निकाय विभाग का भी जिम्मा सौंपा गया। हालांकि, समय के साथ विभागों में बदलाव होता रहा, लेकिन विज की पकड़ सत्ता में बनी रही।
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कांग्रेस: टिकट की होड़ में हुड्डा और सैलजा के समर्थक |Ambala Seat Haryana
इस बार के चुनाव में भाजपा के सामने कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में खड़ी है। कांग्रेस में टिकटों को लेकर घमासान मचा हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा के नजदीकियों में टिकट लेने की होड़ मची हुई है।
हुड्डा के नजदीकी माने जाने वाले पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा भी टिकट की दौड़ में हैं। दूसरी ओर, कुमारी सैलजा के नजदीकी परविंद्र सिंह परी और उनकी पत्नी निमृत कौर भी टिकट पाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। इन तीनों के अलावा भी 11 और उम्मीदवार टिकट की लाइन में हैं। कांग्रेस के भीतर चल रहे इस संघर्ष से यह स्पष्ट है कि पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर मतभेद और गुटबाजी बढ़ रही है, जो चुनाव में पार्टी की संभावनाओं पर असर डाल सकती है।
भाजपा की रणनीति: विज पर दांव या नया चेहरा?
भाजपा की रणनीति के केंद्र में अनिल विज ही रहे हैं। उनकी लोकप्रियता और पकड़ को देखते हुए पार्टी का बड़ा दांव उन्हीं पर हो सकता है। लेकिन चुनावी मौसम में नए चेहरे या युवा उम्मीदवार को आगे लाने की भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि विज का अनुभव और उनके क्षेत्र में मजबूत पकड़ पार्टी के लिए फायदेमंद होगी, लेकिन नए चेहरे की मांग भी पार्टी के भीतर से उठ रही है।
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इनेलो-बसपा गठबंधन: खेल बिगाड़ने की तैयारी
इस बार के चुनाव में इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन ने भी प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। इनेलो का इस क्षेत्र में कभी मजबूत जनाधार रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों में पार्टी की पकड़ कमजोर हुई है। फिर भी, इनेलो-बसपा गठबंधन की कोशिश होगी कि वे भाजपा और कांग्रेस के बीच के मुकाबले में खेल बिगाड़ सकें।
अंबाला छावनी: विकास के मुद्दे और वोटर की सोच
अंबाला छावनी क्षेत्र में विकास के मुद्दे हमेशा से चुनावी चर्चा का केंद्र रहे हैं। क्षेत्र के लोगों की अपेक्षाएं और जरूरतें चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। अनिल विज ने क्षेत्र में कई विकास कार्य किए हैं, जिनमें स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार और बुनियादी सुविधाओं का सुधार शामिल है।
लेकिन विपक्ष, खासकर कांग्रेस, इन विकास कार्यों को लेकर सवाल उठा रही है। कांग्रेस का आरोप है कि विकास कार्यों में भेदभाव हुआ है और सरकारी योजनाओं का लाभ सिर्फ चुनिंदा लोगों तक ही पहुंचा है। इसके अलावा, बेरोजगारी और कृषि संकट भी इस चुनाव में अहम मुद्दे रहेंगे।