Friday, November 22, 2024
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Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट यूपी सरकार की इस हरकत से खफा, माननीय शब्द लगाने पर जताई चिंता

Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उत्तर प्रदेश में सरकारी अधिकारियों के नाम या पदनाम के साथ ‘माननीय’ शब्द के उपयोग पर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने इस विषय में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगते हुए स्पष्ट किया है कि केवल राज्य के मंत्री या विशेष उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति ही ‘माननीय’ शब्द का उपयोग कर सकते हैं, जबकि सरकार के अधीन काम करने वाले अधिकारी इसके हकदार नहीं हैं। यह मामला इटावा जिले से जुड़ा हुआ है, जहां जिलाधिकारी (डीएम) ने एक पत्र में कानपुर के कमिश्नर के लिए ‘माननीय’ शब्द का प्रयोग किया था, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ।

मामला और कोर्ट की प्रतिक्रिया

यह मुद्दा तब उठा जब इटावा जिले के निवासी कृष्ण गोपाल राठौर ने इस संदर्भ में याचिका दायर की। इस याचिका की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट के जस्टिस जेजे मुनीर की सिंगल बेंच ने उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव से पूछा कि राज्य के अधिकारी किस आधार पर ‘माननीय’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोर्ट ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह हैरान करने वाला है कि सरकारी पत्राचार में अधिकारियों के नाम के साथ इस तरह से ‘माननीय’ शब्द का नियमित रूप से उपयोग किया जा रहा है।

कोर्ट ने पूछा कि क्या इसके लिए कोई विशेष प्रोटोकॉल या नियम है, जिसके तहत अधिकारी इस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, या फिर यह मनमाने ढंग से किया जा रहा है।कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें इस बात की स्पष्टता मांगी गई है कि अधिकारियों द्वारा ‘माननीय’ शब्द का उपयोग किस प्रोटोकॉल या नियम के तहत किया जा रहा है। अदालत ने यह भी कहा है कि इस प्रोटोकॉल की जानकारी को हलफनामे के साथ प्रस्तुत किया जाए, जिससे स्थिति स्पष्ट हो सके।

‘माननीय’ शब्द का सही उपयोग | Allahabad High Court

भारतीय संविधान और प्रशासनिक प्रोटोकॉल के तहत, ‘माननीय’ शब्द का उपयोग कुछ विशिष्ट पदों के लिए किया जाता है। आमतौर पर यह शब्द विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे:

  1. न्यायाधीश: भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए ‘माननीय’ शब्द का उपयोग नियमित रूप से किया जाता है। यह उनके संवैधानिक पद की गरिमा को दर्शाता है।
  2. सांसद और विधायक: संसद और विधानसभाओं के सदस्य, विशेष रूप से मंत्री, इस शब्द का प्रयोग कर सकते हैं। यह उनकी विधायिका में विशिष्ट स्थिति को इंगित करता है।
  3. मुख्य मंत्री और अन्य मंत्री: राज्य और केंद्र सरकारों के मंत्रीगण, जो महत्वपूर्ण प्रशासनिक और संवैधानिक पदों पर होते हैं, इस शब्द का उपयोग कर सकते हैं।
  4. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति: ये दोनों सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन होते हैं, और उनके नाम के साथ ‘माननीय’ शब्द का उपयोग हमेशा होता है।
  5. राज्यपाल: राज्यपाल, जो राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं, उनके नाम के साथ भी यह शब्द जोड़ा जाता है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह शब्द उन सरकारी अधिकारियों पर लागू नहीं होता है जो सामान्य प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे हैं। उन्हें अपने नाम या पदनाम के साथ ‘माननीय’ शब्द का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह संवैधानिक और प्रोटोकॉल के विपरीत है।

वर्तमान विवाद और उसकी प्रासंगिकता

यह विवाद तब और महत्वपूर्ण हो गया है जब इटावा जिले के डीएम ने एक आधिकारिक पत्राचार में कानपुर के कमिश्नर के नाम के साथ ‘माननीय’ शब्द का उपयोग किया। याचिका के अनुसार, यह न केवल प्रोटोकॉल के विरुद्ध है, बल्कि इससे सरकारी अधिकारियों के बीच अनुचित आदर और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है। अदालत ने इस पर सख्ती से टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, और इसे जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि 24 घंटे के भीतर लखनऊ और इटावा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के माध्यम से राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव और इटावा के डीएम को यह आदेश भेजा जाए। इसके साथ ही, कोर्ट ने प्रमुख सचिव को आदेश दिया है कि वह एक अक्टूबर तक हलफनामा दाखिल करें, जिसमें इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट हो और यह बताया जाए कि किस प्रोटोकॉल के तहत ‘माननीय’ शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। इस दिन अदालत इस मामले की अगली सुनवाई करेगी।

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संवैधानिक प्रोटोकॉल और इसका महत्व

भारतीय लोकतंत्र में संवैधानिक प्रोटोकॉल का पालन न केवल प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि सभी अधिकारी और पदाधिकारी अपने अधिकार और कर्तव्यों के दायरे में रहकर काम करें। ‘माननीय’ जैसे शब्दों का प्रयोग केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए किया जाना चाहिए, जो संविधान या प्रशासनिक नियमों के तहत इस योग्य हैं।

अगर सरकारी अधिकारी इस शब्द का मनमाने ढंग से उपयोग करते हैं, तो इससे सत्ता के विकेंद्रीकरण की अवधारणा कमजोर होती है। इसका सीधा प्रभाव जनता पर भी पड़ता है, जो अधिकारियों के प्रति अनुचित आदर या डर का भाव विकसित कर सकती है। अदालत ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार से इस पर स्पष्टता मांगी है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। सरकारी अधिकारियों द्वारा ‘माननीय’ शब्द का उपयोग केवल उस स्थिति में किया जाना चाहिए, जब वे इसके संवैधानिक या प्रोटोकॉल के अंतर्गत आते हों। इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर इस प्रकार के शब्दों का गलत इस्तेमाल होता है, तो यह न केवल प्रशासनिक अनुशासन के विरुद्ध है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों को भी कमजोर करता है।

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