Friday, November 22, 2024
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Supreme Court में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति चर्चा में, आंखों पर परंपरागत पट्टी नहीं

Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई है जो अपने अद्वितीय प्रतीकों के माध्यम से न्याय की आधुनिक परिभाषा को प्रस्तुत करती है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि इसकी आंखों पर परंपरागत पट्टी नहीं है जो इस बात का प्रतीक है कि न्याय अंधा नहीं है।

Supreme Court: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की एक नई मूर्ति स्थापित की गई है जो अपने अद्वितीय प्रतीकों के माध्यम से न्याय की आधुनिक परिभाषा को प्रस्तुत करती है। इस मूर्ति की खासियत यह है कि इसकी आंखों पर परंपरागत पट्टी नहीं है जो इस बात का प्रतीक है कि न्याय अंधा नहीं है। इसके एक हाथ में तराजू तो है, जो निष्पक्षता और संतुलन का प्रतीक है, परंतु दूसरे हाथ में तलवार की जगह भारत का संविधान है जो इस बात का संकेत है कि न्याय संविधान के आधार पर किया जाता है।

पहले की मूर्ति में देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी होती थी, जो न्याय की निष्पक्षता का प्रतीक मानी जाती थी। लेकिन नई मूर्ति में यह पट्टी हटा दी गई है, जिससे यह संदेश दिया गया है कि न्याय को आंखें बंद करके नहीं, बल्कि सजीव और सजग दृष्टि से दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, देवी के हाथ में तलवार की जगह भारतीय संविधान की पुस्तक दी गई है, जो संविधान के महत्व और उसके आधार पर न्याय प्रक्रिया के संचालन का प्रतीक है।

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यहां लगी नई न्याय की देवी की मूर्ति सीजेआई के आदेश पर बदली गई है।  इसे प्रसिद्ध मूर्तिकार प्रोफेसर विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने तराशा है, जो मथुरा जिले के नंदगांव के रहने वाले हैं। यह मूर्ति भारतीय न्याय प्रणाली में नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जहां न्याय की देवी की पारंपरिक छवि में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं।

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इस मूर्ति को बनाने के लिए प्रो. विनोद गोस्वामी और उनकी टीम ने छह महीने तक कड़ी मेहनत की। कई बार रेखांकन और विचार-विमर्श के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया। इस मूर्ति का निर्माण फाइबर ग्लास से किया गया है, जिसका वजन लगभग 100 किलोग्राम है। हालांकि, इसे देखने पर यह सफेद संगमरमर से बनी हुई प्रतीत होती है, जो इसे और भी प्रभावशाली बनाती है।

विनोद गोस्वामी नई दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उनके कार्यों को दिल्ली मेट्रो, हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड, और गोवर्धन बस स्टैंड जैसी कई प्रतिष्ठित स्थानों पर देखा जा सकता है। लगभग 30 वर्षों के लंबे करियर में उन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं। इस मूर्ति को तराशने के बारे में बात करते हुए विनोद ने बताया कि उन्हें इसकी प्रेरणा शनिदेव की मां ‘छाया’ से मिली थी, जिन्हें शनिदेव का गुरु माना जाता है। शनिदेव न्याय के देवता हैं, और उनकी मां छाया न्याय की देवी के रूप में उनके लिए एक प्रेरणास्त्रोत थीं।

विनोद गोस्वामी इस कार्य को करने में गर्व महसूस करते हैं और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने उन्हें इस ऐतिहासिक मूर्ति को बनाने का अवसर दिया। सुप्रीम कोर्ट में इस मूर्ति की स्थापना न्याय प्रणाली में संवेदनशीलता और जागरूकता का संदेश देती है, जो संविधान और न्याय दोनों के महत्व को दर्शाती है।

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