VIP Darshan in Temples: भारत के प्रमुख मंदिरों में चल रही वीआईपी दर्शन व्यवस्था के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने स्पष्ट किया कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिस पर अदालत कोई आदेश जारी करे। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई राज्य सरकार इस व्यवस्था को खत्म करना चाहे तो उसे ऐसा करने से नहीं रोका जाएगा।
याचिका का आधार
यह याचिका विजय कुमार गोस्वामी नाम के याचिकाकर्ता द्वारा दायर की गई थी, जिसमें केंद्र सरकार के संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के साथ-साथ 11 राज्यों—तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और असम—को पक्षकार बनाया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि देश के कई बड़े मंदिरों में वीआईपी दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है, जिसमें श्रद्धालुओं को 400 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक की राशि का भुगतान करना पड़ता है। इसके चलते आर्थिक रूप से संपन्न लोग आसानी से दर्शन कर सकते हैं, जबकि आम श्रद्धालु, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल होते हैं, घंटों लंबी कतारों में प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर होते हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि यह व्यवस्था मानवता के दृष्टिकोण से अनुचित है और भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समानता और गरिमा से जीवन के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई कि अगर इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो धीरे-धीरे यह प्रणाली देश के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में भी लागू हो सकती है।
याचिकाकर्ता की प्रमुख माँगें
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से तीन मुख्य अनुरोध किए गए थे—
- संवैधानिक समीक्षा: वीआईपी दर्शन व्यवस्था की न्यायिक समीक्षा की जाए और यह देखा जाए कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं कर रही।
- मानकीकृत व्यवस्था: सभी मंदिरों में दर्शन के लिए एक समान नीति बनाई जाए, जिससे किसी भी व्यक्ति को पैसे के आधार पर विशेषाधिकार न मिले।
- राष्ट्रीय ओवरसाइट कमेटी: एक निगरानी समिति गठित की जाए, जो देशभर के मंदिरों में दर्शन संबंधी मामलों की निगरानी करे और श्रद्धालुओं की शिकायतों का निवारण करे।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को विचारणीय बताया था, लेकिन 2024 में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्पष्ट किया कि अदालत इस विषय पर कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। कोर्ट ने माना कि याचिका में उठाए गए मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह नीति-निर्माण से संबंधित विषय है, जिसे कार्यपालिका को देखना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई राज्य सरकार वीआईपी दर्शन व्यवस्था को समाप्त करने का निर्णय लेती है, तो उसे ऐसा करने से नहीं रोका जाएगा। इसका अर्थ है कि मंदिर प्रशासन और संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर करेगा कि वे इस व्यवस्था को बनाए रखते हैं या इसे खत्म करते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वीआईपी दर्शन व्यवस्था को जारी रखना या समाप्त करना पूरी तरह से मंदिर प्रशासन और राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रहेगा। हालांकि, इस पर लगातार बहस जारी रहेगी कि क्या धार्मिक स्थलों में समानता का अधिकार लागू होना चाहिए और क्या मंदिरों में सभी भक्तों के लिए समान दर्शन व्यवस्था होनी चाहिए।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस फैसले के बाद विभिन्न राज्य सरकारें और मंदिर प्रशासन इस विषय पर क्या कदम उठाते हैं और क्या आम श्रद्धालुओं की दर्शन प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए कोई नई नीति बनाई जाती है।