Supreme Court: भारतीय राजनीति में अपराधियों की भागीदारी और चुनाव लड़ने का अधिकार एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। इसका ताजा उदाहरण दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन का मामला है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुस्तफाबाद सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्हें जेल में रहते हुए प्रचार करने के लिए जमानत दी जाएगी?
ताहिर हुसैन का चुनावी अधिकार और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
ताहिर हुसैन पर गंभीर आरोप हैं, और सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए। अदालत के इस बयान से ताहिर हुसैन के चुनाव प्रचार और जमानत की संभावनाओं पर सवाल खड़े हुए हैं।
21 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी उपाध्याय ने मौखिक याचिका के जरिए दलील दी कि चुनाव लड़ना और प्रचार करना मौलिक अधिकार नहीं है। उनका कहना था कि ईमानदार और साफ छवि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह ने इस पर विचार करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर आत्मचिंतन की आवश्यकता है।
जेल में रहते हुए चुनाव लड़ने का प्रावधान
भारत में पहले भी कई नेता जेल में रहते हुए चुनाव लड़ चुके हैं। अरविंद केजरीवाल, इंजीनियर रशीद, और अमृतपाल सिंह इसके उदाहरण हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ताहिर हुसैन के मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय लेती है।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई व्यक्ति गंभीर अपराधों का आरोपी है और ट्रायल पूरा होने से पहले उसे चुनाव लड़ने से रोका जाता है, तो यह उसकी छवि और मौलिक अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
राजनीति में अपराधियों की बढ़ती भूमिका
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय केवल ताहिर हुसैन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह राजनीति में अपराधियों की भागीदारी को लेकर एक नजीर स्थापित करेगा।
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों का पूरा आपराधिक इतिहास सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था कि उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अखबारों में प्रकाशित की जानी चाहिए। साथ ही यह भी बताना होगा कि पार्टी ने साफ छवि वाले उम्मीदवारों की बजाय ऐसे व्यक्ति को क्यों चुना।
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नैतिकता बनाम कानूनी अधिकार
यह मुद्दा केवल कानूनी ही नहीं, बल्कि नैतिक भी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में अपने फैसले में राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई थी। अब ताहिर हुसैन के मामले में सुनवाई इस बहस को नया मोड़ देगी।
27 जनवरी को अगली सुनवाई
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अलग-अलग राय के बाद अब तीन जजों की पीठ इस पर फैसला करेगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अदालत राजनीति में अपराधियों की भूमिका पर क्या रुख अपनाती है।
संविधान और लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण फैसला
यह मामला न केवल ताहिर हुसैन, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया की शुचिता के लिए भी अहम है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने वाले दिनों में कई नेताओं की किस्मत और राजनीतिक दलों की रणनीतियों को प्रभावित करेगा।