ISRO new chairman V Narayanan: भारत सरकार ने 7 जनवरी को घोषणा की कि डॉ. वी नारायणन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नए अध्यक्ष के रूप में एस सोमनाथ की जगह लेंगे। डॉ. नारायणन 14 जनवरी को पदभार ग्रहण करेंगे, जब एस. सोमनाथ अपने दो साल के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त होंगे। नारायणन अगले दो वर्षों तक या आगामी आदेश तक इस पद पर कार्य करेंगे।
डॉ. वी नारायणन देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं, जिनके पास रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट प्रपल्शन के क्षेत्र में लगभग चार दशकों का अनुभव है। वर्तमान में, वह लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर (LPSC) के निदेशक के रूप में कार्यरत हैं, जो ISRO का प्रमुख केंद्र है।
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Toggleनारायणन का सफर
डॉ. नारायणन की वैज्ञानिक यात्रा विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) से शुरू हुई। उन्होंने ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV) और पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, उन्होंने कई उन्नत प्रणालियों जैसे Ablative नोजल सिस्टम, कॉम्पोजिट मोटर केस और इग्निटर केस के निर्माण और परीक्षण में भी योगदान दिया। उनके प्रयासों ने भारत के अंतरिक्ष मिशनों की सफलता सुनिश्चित की, जिससे भारत एक अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में उभरा।
डॉ. नारायणन का 1984 में ISRO से जुड़ाव हुआ। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत साउंडिंग रॉकेट्स, सॉलिड प्रोपल्सन, और अन्य तकनीकी परियोजनाओं पर काम करके की। उनका नेतृत्व भारत के कई महत्वपूर्ण अंतरिक्ष अभियानों में सहायक रहा है।
डॉ. वी नारायणन ने अपनी तकनीकी शिक्षा भारत में पूरी की। उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से 1989 में क्रायोजेनिक इंजीनियरिंग में एम.टेक (प्रथम स्थान) पूरा किया और 2001 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी हासिल की। उनकी उत्कृष्ट शैक्षिक उपलब्धियों के लिए उन्हें एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा गोल्ड मेडल प्रदान किया गया।
शोध और प्रकाशन
डॉ. नारायणन ने 1200 से अधिक तकनीकी रिपोर्ट्स, 50 शोध पत्र, और 3 पुस्तक अध्याय प्रकाशित किए हैं। उन्होंने प्रमुख भारतीय इंजीनियरिंग संस्थानों जैसे IIT और NIT में मुख्य भाषण भी दिए हैं। इसके अतिरिक्त, वे 10 से अधिक दीक्षांत समारोहों में शामिल हो चुके हैं। उनकी विशेषज्ञता और अनुभव ने उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समुदाय में एक प्रेरणास्रोत बना दिया है।
डॉ. वी नारायणन का ISRO के अध्यक्ष के रूप में चयन भारत की अंतरिक्ष तकनीकों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की संभावना रखता है। उनकी गहरी वैज्ञानिक समझ, तकनीकी अनुभव और नेतृत्व क्षमता से भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करने में सहायता मिलेगी।