Home भारत Government changed Sarai kale khan ISBT Name: भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन...

Government changed Sarai kale khan ISBT Name: भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर सरकार ने सराय काले खां चौक का नाम बदल कर बिरसा मुंडा चौक रखने का किया ऐलान

0
3
Government changed Sarai kale khan ISBT Name

Government changed Sarai kale khan ISBT Name: भगवान बिरसा मुंडा, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर व्यक्तित्व हैं, जिन्हें आदिवासी समुदाय द्वारा भगवान का दर्जा दिया गया है। उनकी 150वीं जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार ने दिल्ली के सराय कालेखां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर “बिरसा मुंडा चौक” करने का ऐलान किया है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस निर्णय की घोषणा करते हुए बिरसा मुंडा को एक सच्चा जननायक बताया।

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलिहातू गांव में हुआ था। वे ब्रिटिश राज के खिलाफ आदिवासी समाज के संघर्ष के प्रतीक बने। उन्होंने 19वीं सदी के अंत में अंग्रेजों और जमींदारी प्रथा के शोषण के खिलाफ उलगुलान (विद्रोह) का नेतृत्व किया। उनकी विचारधारा ने आदिवासी समाज को एकजुट किया और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रेरित किया।

ये भी पढ़े:-Hemant Soren: झारखंड में आयकर और ईडी की छापेमारी, सोरेन के निजी सलाहकार के घर ये कार्यवाही

इस वर्ष उनकी जयंती पर “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर बिहार के जमुई में आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं। यह क्षेत्र झारखंड की सीमा से सटा हुआ है, जहां बिरसा मुंडा के संघर्ष का केंद्र रहा। यह पीएम मोदी का एक सप्ताह में बिहार का दूसरा दौरा है, जो इस दिन के महत्व को और अधिक बढ़ाता है।

बिरसा मुंडा ने अपनी युवावस्था में ही अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विद्रोह कर स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई। वे “धरती आबा” के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिसका अर्थ है “धरती पिता।” उनकी मृत्यु मात्र 25 वर्ष की आयु में 1900 में हुई, लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने आदिवासी समाज में स्वतंत्रता, समानता और न्याय के बीज बो दिए।

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी इस दिन के महत्व को रेखांकित करते हुए इसे आदिवासी समाज के लिए गर्व का क्षण बताया। बिरसा मुंडा की जयंती पर ऐसे आयोजनों से उनका योगदान नई पीढ़ी तक पहुंचेगा और उनके आदर्शों से प्रेरणा ली जाएगी।

भगवान बिरसा मुंडा न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि आदिवासी समुदाय के गौरव, उनकी अस्मिता और संघर्ष का प्रतीक भी हैं। उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए ऐसे प्रयास उनकी स्मृति को जीवित रखने में मददगार हैं।