Thursday, November 14, 2024
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Utpanna Ekadashi 2024 : उत्पन्ना एकादशी की पूजा और व्रत का महत्व

Utpanna Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व होता है। साल में कुल 24 एकादशी आती है और अधिक मास में इनकी संख्या 26 हो जाती है। हर महीने 2 एकादशी आती हैं। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। महीने में आने वाली दोनो एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है।

साल में आने वाली सभी एकादशी का एक समान महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है। मार्गशीर्ष यानि माघ के महीने में आने वाली एकादशी भी विशेष मानी जाती है। इसे उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।

 

एकादशी

कब मनाई जाती है उत्पन्ना एकादशी?

उत्पन्ना एकादशी हर साल मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।

इस वर्ष कब है उत्पन्ना एकादशी?

इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी 26 नंवबर 2024 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी।

क्यों मनाई जाती है उत्पन्ना एकादशी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया।  तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव अपने देवगणों के साथ क्षीर सागर गए।

वहाँ शेषनाग की शय्या पर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने उस अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकडों असुरों का संहार करके नारायण बदरिकाश्रम चले गए। वहां वे बारह योजन लम्बी सिंह वाली गुफा में निद्रालीन हो गए।

दानव मुर ने भगवान विष्णु को मारने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्री हरी के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार से दानव मुर को भस्म कर दिया।

नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि मुर दैत्य का वध उसी ने किया है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया।

bhagwan vishnu

 

कैसे करें उत्पन्ना एकादशी की पूजा?

एकादशी के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें।

घर के मंदिर की साफ-सफाई करें और पीले रंग का कपङा बिछाएं।

भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति को स्नान कराकर पीले कपङे पर स्थापित करें।

मूर्ति या प्रतिमा को चंदन का तिलक लगाएं और पीले फूल चढाएं।

उत्पन्ना एकादशी की कथा पढें और भगवान विष्णु की आरती करें।

मूर्ति के सामने तिल के तेल का दीया जलाएं और व्रत का संकल्प लें।

पूरे दिन व्रत करें और रात को भगवान विष्णु को भोग लगाकर अपना व्रत खोलें।

 

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