Supreme Court ने 5 नवंबर, 2024 को उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट की वैधता पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले में अदालत ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया है, जिसमें हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को संविधान के मौलिक ढांचे के खिलाफ करार देते हुए सभी छात्रों को सामान्य स्कूलों में प्रवेश देने का आदेश दिया था।
इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ द्वारा की गई थी। पीठ में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि राज्य सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे कानून बनाने का अधिकार है जो शिक्षा के प्रबंधन, स्वास्थ्य और पाठ्यक्रम के पहलुओं पर ध्यान देते हैं।
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ToggleSupreme Court का मदरसों की शिक्षा के उद्देश्य पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही मदरसे धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन उनका प्रमुख उद्देश्य शिक्षा प्रदान करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी छात्र को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा, जो संविधान द्वारा उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में प्रदान किया गया है।
डिग्री प्रदान करने का अधिकार असंवैधानिक
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के उस प्रावधान को अवैध घोषित किया जिसमें मदरसा बोर्ड को “फाजिल” और “कामिल” जैसी डिग्रियां देने का अधिकार दिया गया था। कोर्ट ने माना कि यह प्रावधान यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) एक्ट का उल्लंघन करता है। अतः, इसे असंवैधानिक करार दिया गया और मदरसों से डिग्री प्रदान करने का अधिकार हटा लिया गया।
मदरसों के धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था पर सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि मदरसा बोर्ड राज्य सरकार की सहमति से एक ऐसी व्यवस्था विकसित कर सकता है, जिससे बिना धार्मिक चरित्र को प्रभावित किए हुए, छात्रों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दी जा सके। यह छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जोड़े रखने का एक उपाय हो सकता है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
इससे पहले, 22 मार्च 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए, राज्य के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करार दिया था। इस फैसले में हाई कोर्ट ने सरकार से अपेक्षा की थी कि मदरसों के छात्रों को मुख्यधारा के स्कूलों में प्रवेश दिलाने की योजना बनाई जाए। इसके परिणामस्वरूप, कई मदरसों को खतरा महसूस हुआ कि उन्हें अपने धार्मिक पहचान के साथ समझौता करना पड़ेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए यह स्पष्ट किया कि संविधान में राज्य को शिक्षा को नियमित करने का अधिकार है, और मदरसों में धार्मिक शिक्षा को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता। 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट के हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी, और अंतिम सुनवाई के बाद 22 अक्टूबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इस फैसले के अनुसार, यूपी मदरसा एक्ट का अधिकांश भाग संविधान के अनुरूप है, परन्तु डिग्री देने के अधिकार को असंवैधानिक करार दिया गया है। राज्य सरकार अब मदरसों के लिए एक समानांतर शिक्षा व्यवस्था विकसित कर सकती है, जिसमें धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रकार की शिक्षा का समावेश हो।