Govardhan Puja 2024: कार्तिक महीने में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है, जो साल के मुख्य त्य़ौहारों में से माना जाता है। दीपावली के ठीक एक दिन बाद गोवर्धन का त्यौहार आता है, जिसे हिंदू धर्म के लोग बहुत धूमधाम के साथ मनाते हैं। हिंदू धर्म में जितना महत्व दीपावली के त्यौहार का होता है, उतना ही महत्व गोवर्धन के त्यौहार का भी होता है।
गोवर्धन पूजा मुख्य रुप से गोवर्धन पर्वत को समर्पित होती है। वही पर्वत जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी। इस दिन सभी लोग अपने घरों में गोवर्धन भगवान की प्रतिमा बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।
कब मनाते हैं गोवर्धन का त्यौहार? | Govardhan Puja 2024
गोवर्धन का त्यौहार हर साल कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। यह दीपावली के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है।
इस वर्ष कब है गोवर्धन पूजा?
इस वर्ष गोवर्धन पूजा 2 नंवबर 2024 दिन शनिवार को मनाई जाएगी।
गोवर्धन पर्वत का महत्व | Govardhan Puja 2024
जैसा कि हमने बताया कि गोवर्धन पूजा मुख्य रुप से भगवान गोवर्धन को समर्पित होती है, जो मथुरा में एक पर्वत के रुप में विराजमान है। मथुरा के निवासियों में आज भी गोवर्धन पर्वत की बहुत मान्यता मानी जाती है। ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने स्वंय गोवर्धन पर्वत को भगवान की संज्ञा दी थी और सभी ब्रजवासियों को उसका महत्व समझाया था। उसके बाद से ही हिंदू धर्म के लोगों में गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।
गोवर्धन पर्वत लगभग 7 कोस यानि 21 किलोमीटर में फैला हुआ है। हिंदू धर्म के लोगों में ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति चारों धाम की यात्रा नहीं कर पाता। उस व्यक्ति को गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने पर उसके समान ही फल की प्राप्ति होती है। एक दिन में कई हजारों लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाते हैं। शास्त्रों में ऐसा बताया जाता है कि जो भी व्यक्ति पैदल चलकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है।
कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत? | How Govardhan Puja Stared
द्वारपर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लेकर मथुरा में जन्म लिय़ा था। एक बार उन्होनें देखा कि सभी ब्रजवासी किसी बङी पूजा की तैयारी में लगे हुए हैं और तरह-तरह के पकवान बनाए जा रहे हैं। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माता से पूछा कि मैया ये किस चीज की तैयारी हो रही है? यशोदा मैया ने बताया कि बृज में हर साल जो पूजा इंद्र देव के लिए की जाती है, उसी की तैयारी हो रही है।
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माता से पूछा कि हम देवराज इंद्र की पूजा क्यों करते हैं तब मैया ने बताया कि इंद्र देव वर्षा करते हैं जिसके कारण हमारे अनाज की उपज होती है और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा कि मैया हमारी गायें चरने के लिए गोवर्धन पर्वत पर जाती हैं। वहीं से चारा खाकर उनका पेट भरता है, इसीलिए पूजा देवराज इंद्र की नहीं बल्कि गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण की बात मानकर सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्णय लिया। जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो गए। उन्होनें मथुरा में मुसलाधार बारिश करनी शुरु कर दी। जब ब्रजवासियों ने देखा कि प्रलय आने की स्थिति पैदा हो गई है तब वह श्री कृष्ण को गलत कहने लगे और देवराज इंद्र से माफी मांगने लगे। तब श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्का अंगुली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को उनके गाय-बछङों के समेत गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उनकी सुरक्षी की।
देवराज इंद्र अपने अपमान का बदला लेने के लिए लगातार 7 दिन तक वर्षा करते रहे लेकिन जब श्री कृष्ण ने हार नहीं मानी तब वह समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। तब देवराज इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से अपनी भूल के लिए माफी मांगी।
इस घटना के बाद से सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत को अपनी गायों का अन्नदाता मान लिया और तब से लेकर आज तक हर साल कार्तिक मास में प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है।
कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा? | Govardhan Puja 2024
गोवर्धन पर्वत मथुरा में स्थित है, जहाँ ब्रजवासियों के द्वारा हर साल बहुत धूम-धाम से इसकी पूजा की जाती है। मथुरा के अलावा पूरे भारत देश में गोवर्धन का त्यौहार मनाया जाता है। सभी लोग गाय या भैंस के साफ गोबर से अपने घर के आँगन में गोवर्धन भगवान की प्रतिमा बनाते हैं। जिसमें वह गोवर्धन भगवान को विद्यमान करते हैं। उसके बाद रात के समय उस प्रतिमा की पूजा की जाती है। सबसे पहले उसे हल्दी का तिलक लगाया जाता है और खील-खिलौने का भोग लगाया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट भी बनाया जाता है। सांस्कृतिक भाषा के अनुसार अन्नकूट का अर्थ होता है अन्न का भंडार या अन्न का पर्वत। अन्नकूट कई अलग-अलग तरह की सब्जियों और अन्न को मिलाकर बनाया जाता है। गोवर्धन भगवान की प्रतिमा को अन्नकूट का भोग लगाकर उसके चारों ओर परिक्रमा लगाई जाती है और साथ में जल भी छिङका जाता है। मथुरा में इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा के बाद उन्हें 56 प्रकार का भोग लगाया जाता है।