Supreme Court: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 22 अक्टूबर, 2024 को एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से यह सवाल उठाया कि वह केवल मदरसों को लेकर ही चिंतित क्यों है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि क्या एनसीपीसीआर ने अन्य धर्मों के धार्मिक शिक्षण संस्थानों के खिलाफ भी इसी प्रकार का रुख अपनाया है।
यह मुद्दा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक ठहराने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं के संदर्भ में आया था। उच्च न्यायालय ने उस कानून को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर खारिज कर दिया था। एनसीपीसीआर ने अदालत के सामने अपनी चिंता व्यक्त की थी कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा, विशेष रूप से विज्ञान, गणित और चिकित्सा या इंजीनियरिंग जैसे पेशेवर क्षेत्रों में करियर बनाने का मौका नहीं मिल पा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और सवाल
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी मौजूद थे। एनसीपीसीआर का प्रतिनिधित्व सीनियर एडवोकेट स्वरूपमा चतुर्वेदी कर रही थीं, जिन्होंने मदरसों में पढ़ाई जाने वाली शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का विकल्प नहीं मानने की बात कही। आयोग की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि धार्मिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों को नौसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, और अन्य पेशेवर क्षेत्रों में अवसर नहीं मिल पाते हैं।
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मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या एनसीपीसीआर ने सिर्फ मदरसों के खिलाफ कार्रवाई की है या फिर उसने अन्य धर्मों के संस्थानों के लिए भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने जानना चाहा कि क्या आयोग ने अन्य धार्मिक संस्थानों, जैसे मठ, पाठशालाओं, या अन्य धार्मिक स्कूलों के लिए भी निर्देश जारी किए हैं कि जब तक वहां धर्मनिरपेक्ष विषय नहीं पढ़ाए जाते, बच्चों को वहां नहीं भेजा जाए।
मदरसा शिक्षा पर एनसीपीसीआर का रुख
एनसीपीसीआर ने मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता और वहां पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम पर अपनी रिपोर्ट दाखिल की थी। आयोग का कहना था कि अगर मदरसा शिक्षा को स्कूली शिक्षा का पूरक माना जाए, तो उसे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह मुख्यधारा की शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता। आयोग ने मदरसा प्रणाली की कमियों को उजागर करने के लिए एक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की और राज्यों से इन मदरसों का निरीक्षण करने का आग्रह किया।
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने आयोग के इस रुख पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या अन्य धार्मिक संस्थानों के बच्चों को भी विज्ञान और गणित जैसे धर्मनिरपेक्ष विषय पढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया, “आप केवल मदरसों के लिए ही क्यों चिंतित हैं? हम यह जानना चाहते हैं कि क्या आपने अन्य धार्मिक संस्थानों के खिलाफ भी कोई निर्देश जारी किया है?” कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि धार्मिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का पूरक माना जाए, तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन क्या एनसीपीसीआर ने सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार किया है?
अन्य धार्मिक संस्थानों पर समान रुख की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल व्यापक धार्मिक शिक्षा प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाता है, जिसमें यह देखना आवश्यक है कि क्या एनसीपीसीआर ने सिर्फ मुस्लिम मदरसों को ही नहीं, बल्कि अन्य धार्मिक शिक्षण संस्थानों को भी अपने दायरे में लिया है। मुख्य न्यायाधीश ने आयोग से स्पष्ट किया कि धार्मिक संस्थानों में दी जाने वाली शिक्षा मुख्यधारा की शिक्षा का पूरक हो सकती है, लेकिन यह उसकी जगह नहीं ले सकती।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, “क्या आपने अन्य धर्मों के धार्मिक संस्थानों के लिए भी ऐसे ही दिशा-निर्देश जारी किए हैं कि जब तक धर्मनिरपेक्ष विषय नहीं पढ़ाए जाते, तब तक बच्चों को वहां नहीं भेजा जाए?” इस सवाल ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय केवल मदरसों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा था, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहता था कि सभी धार्मिक संस्थानों में बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता और समावेशिता को ध्यान में रखा जाए।
धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा का संतुलन
इस मामले में न्यायालय के समक्ष यह मुद्दा भी आया कि धार्मिक शिक्षा और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार और स्वतंत्रता प्रदान करता है। ऐसे में बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें विज्ञान, गणित और अन्य धर्मनिरपेक्ष विषयों में भी सशक्त किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने करियर और जीवन में सफल हो सकें।
न्यायालय ने यह भी जानना चाहा कि क्या एनसीपीसीआर ने राज्यों को यह निर्देश दिया है कि धार्मिक संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को आधुनिक और तकनीकी शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएं। आयोग का यह कहना कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे मुख्यधारा की शिक्षा से वंचित रह जाएंगे, न्यायालय के समक्ष एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनकर उभरा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार की शिक्षा प्रणाली, चाहे वह धार्मिक हो या धर्मनिरपेक्ष, बच्चों के समग्र विकास और उनके भविष्य के करियर के लिए बाधक नहीं होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने यह स्पष्ट किया कि भारत में धार्मिक शिक्षा और मुख्यधारा की शिक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। एनसीपीसीआर को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सभी धर्मों के बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समान रूप से काम करे। धार्मिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान प्रदान करना हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान भी प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए, ताकि वे अपने भविष्य में किसी भी प्रकार की सीमाओं से मुक्त रहें।