Saturday, November 23, 2024
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Global Climate Crisis: वैज्ञानिकों की चेतावनी, खतरे में आ सकता हैं जीवन का अस्तित्व

Global Climate Crisis : जलवायु संकट से संबंधित चेतावनियों का अब विस्तार करते हुए, एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने हाल ही में गंभीर संभावित आपदाओं का संकेत दिया है। “बायोसाइंस” पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के लगातार बढ़ते प्रभाव से पृथ्वी के अस्तित्व पर खतरे का मंडराना अब कहीं अधिक स्पष्ट हो चुका है।

35 महत्वपूर्ण मापदंडों में से 25 अब अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुके हैं, जो हमारे पर्यावरण और जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहे हैं। इन मापदंडों में औसत सतही तापमान, महासागरों की गर्मी, वैश्विक समुद्री स्तर और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शामिल हैं। यदि यह प्रवृत्ति बनी रही, तो पृथ्वी पर गंभीर और अपरिवर्तनीय बदलाव का सामना करना पड़ सकता है।

जलवायु परिवर्तन की वर्तमान स्थिति

रिपोर्ट के अनुसार, फॉसिल फ्यूल (कोयला, तेल, गैस) से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में लगातार वृद्धि हो रही है और यह अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के रिसर्चरों समेत कई देशों के वैज्ञानिकों की टीम ने यह भी पाया कि वर्ष 2022 के मुकाबले 2023 में कोयला, तेल और गैस की खपत में 1.5% की वृद्धि हुई है। इसके विपरीत, सौर और पवन ऊर्जा का उपयोग जीवाश्म ईंधन के मुकाबले अभी भी 15 गुना कम है। इससे न केवल वायुमंडल में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का संचय हो रहा है बल्कि औसत तापमान में वृद्धि भी हो रही है।

इस अध्ययन में ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की तेजी से घटती मोटाई का भी उल्लेख किया गया है, जो समुद्र स्तर के बढ़ने का प्रमुख कारण है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि इस तरह का तापमान वृद्धि जारी रही, तो तटीय इलाकों में बाढ़ और खतरनाक मौसम की घटनाएं अधिक सामान्य हो जाएंगी, जिससे अनगिनत लोगों के जीवन और आजीविका को खतरा हो सकता है।

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महासागर का बढ़ता तापमान और मानव जनसंख्या में वृद्धि

महासागरों में बढ़ता तापमान, समुद्री जीवन और वैश्विक जलवायु पर गंभीर असर डालता है। महासागरों में ऊर्जा का संचय बढ़ने से मौसम के चक्र में अस्थिरता आती है, जिससे तूफान और अन्य प्रतिकूल मौसम की घटनाओं की तीव्रता बढ़ रही है। साथ ही, महासागर का जलस्तर भी हर साल अधिकतम ऊंचाई पर पहुंचता जा रहा है।

मानव जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि भी जलवायु संकट को बढ़ा रही है। पृथ्वी की जनसंख्या में प्रतिदिन 2 लाख लोग जुड़ते जा रहे हैं, जो संसाधनों पर बढ़ते दबाव का संकेत देता है। अधिक जनसंख्या का अर्थ है अधिक ऊर्जा की मांग और अधिक फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल, जिससे पर्यावरणीय संकट गहराता जा रहा है।

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि

वातावरण में मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की मौजूदगी में रिकॉर्ड वृद्धि देखी गई है। इन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी अब उच्चतम स्तर पर है, जिसमें 1980 से 2020 के बीच नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर लगभग 40 प्रतिशत बढ़ा है। नाइट्रस ऑक्साइड और मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में अधिक प्रभावी और खतरनाक ग्रीनहाउस गैसें मानी जाती हैं। इनकी मात्रा बढ़ने से वायुमंडल की गर्मी बढ़ती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है और इसका सीधा प्रभाव कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और जल संसाधनों पर पड़ता है।

समाधान और ठोस कदम

वैज्ञानिकों का सुझाव है कि यदि तत्काल और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो इसके दुष्परिणाम भारी होंगे। जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. कार्बन उत्सर्जन में कमी: फॉसिल फ्यूल का कम से कम इस्तेमाल कर नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे सौर और पवन ऊर्जा को प्रोत्साहन देना चाहिए। सरकारों को इस दिशा में ठोस नीतियाँ बनानी होंगी ताकि ऊर्जा उत्पादन के पारंपरिक साधनों से हटकर पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को अपनाया जा सके।
  2. ग्रीनहाउस गैसों का नियंत्रण: मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन पर नियंत्रण हेतु कृषि पद्धतियों में सुधार करना आवश्यक है। मांस उत्पादन में कमी, खाद्य अपशिष्ट को नियंत्रित करना, और फसल उत्पादन में कीटनाशकों के उपयोग को कम करना इसके कारगर तरीके हो सकते हैं।
  3. वन संरक्षण और वृक्षारोपण: वनों की कटाई से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बढ़ते हैं, क्योंकि पेड़ कार्बन को अवशोषित करते हैं। वनों का संरक्षण और वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर कार्बन संतुलन को बनाए रखा जा सकता है।
  4. महासागरों की रक्षा: महासागरों की सुरक्षा के लिए मछली पकड़ने के अनियंत्रित कार्यों पर नियंत्रण रखना और महासागर प्रदूषण को रोकना आवश्यक है। इसके अलावा, तटीय क्षेत्रों में समुद्री पौधों और प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के उपाय किए जाने चाहिए।
  5. स्थानीय स्तर पर जागरूकता: जनसंख्या को जलवायु संकट के प्रति जागरूक करना और स्थानीय स्तर पर उपायों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। लोगों को जलवायु परिवर्तन के कारणों और इसके समाधान के बारे में शिक्षित करने से बड़े पैमाने पर बदलाव लाए जा सकते हैं।

वैज्ञानिकों की चेतावनी से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर संकट बनता जा रहा है, जिससे हमारे ग्रह और हमारी आने वाली पीढ़ियों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एक ओर जहां प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु को प्रभावित कर रहा है, वहीं बढ़ती जनसंख्या और मानवीय गतिविधियां इसे और बढ़ा रही हैं। वर्तमान संकट का सामना करने के लिए तत्काल नीतिगत और व्यक्तिगत स्तर पर कदम उठाने की आवश्यकता है। समय पर और ठोस कार्रवाई से ही इस जलवायु संकट से उबरा जा सकता है और पृथ्वी पर जीवन की स्थिरता को बनाए रखा जा सकता है।

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