Haryana Election Results: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक बार फिर पूर्ण बहुमत हासिल की है जबकि कांग्रेस को इस बार भी विपक्ष में संतोष करना पड़ेगा। बीजेपी ने 48 सीटें जीत हासिल की है। इसके विपरीत, कांग्रेस ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की है । बीजेपी की हरियाणा में नेतृत्व बदलने की रणनीति कारगर साबित होती नजर आई है, जिससे साफ है कि कांग्रेस की चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं।
एग्जिट पोल से कांग्रेस का उत्साह और हकीकत
एग्जिट पोल के रुझानों ने कांग्रेस को काफी उत्साहित किया था। उम्मीद थी कि इस बार कांग्रेस हरियाणा में सत्ता में वापसी कर सकती है। लेकिन जैसे-जैसे नतीजे सामने आए, कांग्रेस को फिर से यह सच्चाई समझ आई कि बीजेपी का मुकाबला करना आसान नहीं है। कांग्रेस ने लगातार आंतरिक विवादों का सामना किया, जो चुनाव परिणाम में उसकी असफलता का एक बड़ा कारण बना। कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान का फायदा बीजेपी ने बखूबी उठाया, जिसके कारण कांग्रेस कमजोर साबित हुई।
कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान और रणनीतिक कमजोरियां
हरियाणा में कांग्रेस का चुनाव प्रचार और टिकट बंटवारा तीन प्रमुख नेताओं के नेतृत्व में हुआ: भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा, और रणदीप सुरजेवाला। तीनों नेताओं ने एकजुटता का दिखावा तो किया, लेकिन आंतरिक असहमति के कारण पार्टी विभाजित नजर आई। हुड्डा एक बड़े जाट नेता हैं और उनकी क्षेत्रीय पकड़ मजबूत है। दूसरी ओर, सैलजा दलित समुदाय में अपनी लोकप्रियता रखती हैं, जबकि रणदीप सुरजेवाला पार्टी के एक महत्वपूर्ण रणनीतिकार हैं। इन तीनों नेताओं की अपनी-अपनी रणनीतियां थीं, जिससे पार्टी में नेतृत्व को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रही।
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नेतृत्व को लेकर अंतर्द्वंद्व और दिल्ली दौरे
चुनाव प्रचार के बीच में ही नेतृत्व के सवाल पर आपसी खींचतान इतनी बढ़ गई कि सैलजा और सुरजेवाला दोनों दिल्ली चले गए, जबकि हुड्डा ने अकेले प्रचार की कमान संभाली। अंततः शीर्ष नेतृत्व ने हस्तक्षेप किया और दोनों नेताओं को वापस मैदान में लाया, लेकिन इस घटनाक्रम से पार्टी के भीतर असंतोष खुलकर सामने आ गया। सैलजा और सुरजेवाला की चुनावी नाराजगी ने कांग्रेस की एकजुटता को प्रभावित किया और कार्यकर्ताओं का मनोबल भी गिरा।
बीजेपी को मिला कांग्रेस की कमज़ोरी का लाभ
कांग्रेस की इस आंतरिक खींचतान और गुटबाजी का सीधा फायदा बीजेपी को मिला, जिससे वह अपनी चुनावी रणनीति में और मजबूत हुई। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाकर विपक्ष की कमजोरियों पर सीधा प्रहार किया और जनता को भरोसा दिलाया कि उसके पास हरियाणा के लिए बेहतर नेतृत्व है। वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी कांग्रेस के वोट प्रतिशत में गिरावट से लाभ मिला, जिससे उनका वोट प्रतिशत पहले से बेहतर दिखा।
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में गुटबाजी
कांग्रेस ने हरियाणा में 90 विधानसभा सीटों में से 89 सीटों पर चुनाव लड़ा। टिकट बंटवारे के दौरान भी पार्टी के भीतर तीनों गुटों का प्रभाव स्पष्ट दिखा। हुड्डा ने अपने गुट के करीब 23 विधायकों को दोबारा टिकट दिलवाने में सफलता हासिल की, जबकि सैलजा और सुरजेवाला के पसंदीदा उम्मीदवारों को भी मौका दिया गया। कैथल सीट से रणदीप सुरजेवाला के बेटे आदित्य सुरजेवाला को भी पार्टी ने मैदान में उतारा। हालांकि, चुनाव नतीजे बताते हैं कि पार्टी की इस गुटबाजी ने उसे नुकसान ही पहुंचाया।
विनेश फोगाट का कांग्रेस में प्रवेश
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ही पहल करते हुए विनेश फोगाट और रामकरण काला को कांग्रेस में शामिल किया था, जिनकी उम्मीदवारी को लेकर काफी चर्चाएं भी हुईं। हुड्डा की सिफारिश पर फोगाट जुलाना सीट से चुनाव लड़ीं और जीतने में सफल रहीं। हालांकि, सैलजा और सुरजेवाला के पसंद के उम्मीदवार भी टिकट पाने में सफल रहे, लेकिन कांग्रेस के लिए यह तालमेल पर्याप्त नहीं था। पार्टी में संतुलन बनाने का प्रयास भले किया गया हो, लेकिन स्पष्ट और मजबूत नेतृत्व की कमी के कारण कांग्रेस जनता के बीच अपना भरोसा कायम नहीं रख पाई।
बीजेपी और कांग्रेस का बराबरी का मैदान, लेकिन रणनीति में भिन्नता
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने 89-89 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन बीजेपी की स्पष्ट रणनीति, एकजुटता, और नेतृत्व में स्थिरता ने उसे कांग्रेस पर बढ़त दिलाई। दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही। इस असफल गठबंधन के बाद भी ‘आप’ और बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव में कुछ बढ़त बनाई और अपने वोट प्रतिशत में सुधार किया। आईएनएलडी और अन्य छोटे दल भी इस बार कोई प्रभावी प्रदर्शन नहीं कर पाए, जिससे मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा।
हरियाणा में कांग्रेस की राह कठिन, बीजेपी की चुनौती बढ़ी
कांग्रेस की अंदरूनी कलह और नेतृत्व की कमी ने उसे हरियाणा में फिर से विपक्ष में ला खड़ा किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा ने चुनावी नतीजों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व हरियाणा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाया, जिससे पार्टी की ताकत बिखर गई। दूसरी ओर, बीजेपी ने अपने मजबूत संगठन और नेतृत्व क्षमता के दम पर हरियाणा में फिर से विजय पताका फहराने का प्रयास किया है, जिससे प्रदेश में पार्टी की पकड़ और मजबूत होती दिख रही है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस को अभी भी अपनी नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे पर ध्यान देने की जरूरत है। कांग्रेस की हार के पीछे गुटबाजी, नेतृत्व की असमंजसता, और आपसी मनमुटाव जैसे कारण प्रमुख रहे हैं। बीजेपी ने अपनी रणनीतिक सोच, संगठनात्मक एकजुटता, और नए नेतृत्व के माध्यम से प्रदेश में एक बार फिर से अपनी स्थिति मजबूत की है।