Online Betting : यह कहानी आज के युवाओं और वयस्कों के जीवन में ऑनलाइन गेमिंग और बेटिंग की लत के खतरों को उजागर करती है। कुलविंदर और राज पांडेय जैसे लोग, जो इस ऑनलाइन दुनिया में फंसते हैं, शुरुआत में आसानी से पैसा कमा लेते हैं और फिर धीरे-धीरे भारी नुकसान झेलते हैं।
इन लोगों के सामने छोटे-मोटे निवेश से शुरू होकर कर्ज़ का विशाल बोझ बनने की कहानी है। ऐसे लोग न केवल अपनी जमा-पूंजी गंवाते हैं, बल्कि कई बार नौकरी भी छोड़ देते हैं, रिश्तों में खटास आ जाती है और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
ऑनलाइन गेमिंग का बढ़ता चस्का
भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग, खासकर बेटिंग एप्स का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। मशहूर हस्तियों द्वारा प्रमोट किए गए गेम्स से आकर्षित होकर लोग जल्दी पैसे कमाने के लालच में इसे अपनाते हैं। इन ऐप्स की विज्ञापन रणनीतियों में मनोवैज्ञानिक खेल का उपयोग होता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करते हुए ये कंपनियाँ लोगों को बार-बार पैसा लगाने के लिए प्रेरित करती हैं। इसमें जीत का सपना दिखाकर ज्यादातर लोग हार का शिकार होते हैं और लाखों रुपए गवां बैठते हैं।
कानूनी स्थिति और प्रतिबंध
भारतीय कानून में जुआ खेलना बैन है, लेकिन कुछ राज्यों में ऑनलाइन बेटिंग को कानूनी मान्यता मिली हुई है। सरकार ने बेटिंग और जुए से जुड़े ऐप्स को प्रतिबंधित करने के लिए कदम उठाए हैं। गृह मंत्रालय ने 2023 में 581 ऐप्स को ब्लॉक किया, जिनमें 174 सट्टेबाजी के थे। इसके बावजूद, कई लोग सट्टेबाजी की इस दुनिया में फंस रहे हैं।
इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के कुछ देशों में सट्टेबाजी लीगल है. भारत में भी कई बार इसे लीगल करने की बात उठी है. साल 1966 में सुप्रीम कोर्ट ने रमी और घुड़दौड़ में भी सट्टेबाजी को लीगल करार दिया लेकिन क्रिकेट में सट्टेबाजी गैर-कानूनी है.
साल 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलेशन बिल पेश किया, जिसमें फेंटेसी स्पोर्ट्स, ऑनलाइन गेम्स, आदि को रेगुलेट करने की बात की
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कितना बड़ा है ऑनलाइन सट्टे का बाजार
रिसर्च फर्म स्टेटिस्टा के मुताबिक, 2012 में भारत में करीब 6.10 लाख करोड़ रुपए का सट्टा लगाया गया था. जो 2018 में बढ़कर करीब 9 लाख करोड़ रुपए का हो गया.
इन्फ्लुएंसर और सेलिब्रिटी का असर
इन ऑनलाइन गेम्स से कुछ लोगों को पैसे मिल भी जाते हों लेकिन इसमें ज्यादातर लोगों को नुकसान ही उठाना पड़ता है. कई बड़े सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर इन बेटिंग एप्स और गेम ऐप्स को प्रमोट भी करते हैं. उन्हें तो इस बात के पैसे मिलते हैं लेकिन उनका क्या, जो दूसरों से उधार लेकर और अपने पास रखी जमा पूंजी भी लुटा देते हैं. ये खेल कोई हजार, 2 हजार का नहीं बल्कि करोड़ों का है.
बचाव के उपाय
बच्चों और युवाओं को इन खतरनाक ऐप्स से बचाने के लिए परिवार और शिक्षकों को जागरूक रहना जरूरी है। बच्चों के ब्राउजिंग पैटर्न का रिव्यू करना और उनको इस लत से दूर रखने के लिए जागरूकता फैलाना बेहद आवश्यक है। इसके अलावा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि गेमिंग की लत से बचने के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाए।
ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी का यह जाल कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि करोड़ों रुपये का बाजार बन चुका है। इसकी चपेट में आकर लोग अपनी जीवनभर की कमाई गंवा बैठते हैं। यह एक नए प्रकार का डिजिटल जुआ है जो देश के लाखों लोगों को फंसा रहा है। इनसे सावधान रहना और इसके मनोवैज्ञानिक प्रभावों को समझना जरूरी है ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस खतरे से बचाया जा सके।