Ganesh Chaturthi 2024, Chuha kaise bana Ganesh ji ka wahan: भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। बुद्धि और विद्या के देवता गणपति जी का अपनी तीव्र बुद्धि के लिए जाने जाते हैं। तर्क-वितर्क में उनका कोई जवाब नहीं। इसलिए हिंदू धर्म में उनका खास मान्यता है। इस उत्सव के दौरान भगवान शिव के पुत्र गणेश जी की मूर्ति को घर लाते हैं। उत्सव के दौरान लोगों गणेश जी की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं साथ ही उन्हें लडडू और मोदक का भी भोग लगाते हैं।
हालांकि, इस उत्सव के दौरान जहां गणेश जी की मूर्ति स्थापना जरूरी है वहीं उनकी सवारी चूहा भी बहुत शुभ माना जाता है। अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहे हैें कि Chuha kaise bana Ganesh ji ka wahan? इसके पीछे की कहानी क्या है? तो आप सही जगह आए हैं। इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। यहां तक की कई कहानियां हैं जिसमें इसका जिक्र मिलता है। आइए उन्हीं कहानियों पर ध्यान देते हैं।
Chuha kaise bana Ganesh ji ka wahan | How did the mouse become Lord Ganesha’s wahan?
पहली कहानी
पुराणों में दी गई जानकारी के अनुसार, कहा गया कि देवराज इंद्र के दरबार में ‘क्रोंच’ नामक गंधर्व था। वह अप्सराओं के साथ काफी समय बिताता था। हंसी ठिठोली के साथ उसका दिन गुजरता था। इसी दौरान उसने मुनि वामदेव के ऊपर पैर रख दिया जिससे वह क्रोधित हो गए। इसके बाद उन्होंने क्रोंच को श्राप दिया कि वह चूहा बन जाए। चूहा बनते ही वह सीधा पराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा। वहां जाते ही उस मूषक ने भयंकर उत्पात मचाया। इस पर पराशर ऋषि बहुत दुखी हुए और सोचने लगे की इस चूहे के आतंक को कैसे खत्म करें?
भगवान गणेश भी उसी आश्रम में थे। महर्षि पराशर ने मूषक की करतूत गणेशजी को बताई। भगवान गणेश ने उस दुष्ट मूषक को सबक सिखाने की सोची। तब गणपति बप्पा ने मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका। पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक पहुंचा और उसके गले में अटक गया। तब पाश में घिसटता हुआ मूषक गणेश जी के सामने उपस्थित हुआ, लेकिन तब तक वह बेहोश हो चुका था। कुछ ही देर में जब उसे होश आया उसने बिना पल गंवाए गणेशजी की आराधना शुरू कर दी और अपने जीवन की रक्षा की भीख मांगने लगा। तब गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।
दूसरी कहानी
Chuha kaise bana Ganesh ji ka wahan के संदर्भ में दूसरी कहानी के अनुसार, सुमेरु पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थे। उनकी पत्नी पतिव्रता होने के साथ ही काफी रूपवती थी। उनके रूप पर गंधर्व से लेकर हर कोई मोहित था। एक बार क्रौंच नाम का एक बलशाली और दुष्ट गंधर्व ने खुद को रोक नहीं सका और ऋषि पत्नी का हरण करने वहां पहुंच गया। जैसे ही उसने कोशिश की, वहां सौभरि ऋषि आ पहुंचे और क्रौंच को देखकर क्रोध में आकर उसे शाप दे दिया।
उन्होंने कहा कि ‘तूने चोर की तरह मेरी पत्नी का हरण करना चाहा है, तू मूषक बन जा। तुझे धरती के भीतर छुपकर रहना पड़े और चोरी करके अपना पेट भरेगा।’ इसके बाद शापित क्रौंच ने मुनि के चरणों में गिरकर अपनी गलती की क्षमा मांगी। क्रौंच ने ऋषि से कहा मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई इसलिए मैंने ऐसा अपराध किया। आप दयालु हैं, मुझे क्षमा कर दें। तब ऋषि ने कहा कि मेरा शाप व्यर्थ तो नहीं जा सकता लेकिन इसमें सुधार कर देता हूं। इस श्राप के कारण तुम्हें बहुत सम्मान मिलेगा।
तीसरी कहानी
एक और कथा के अनुसार, एक बार गजमुखासुर नाम के राक्षस ने अपने बाहुबल से देवताओं को बहुत परेशान कर दिया था। सभी देवता एक साथ भगवान गणेश के पास मदद मांगने पहुंचे। तब भगवान श्रीगणेश ने उन्हें गजमुखासुर से मुक्ति दिलाने का भरोसा दिया तब श्री गणेश का गजमुखासुर दैत्य से भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में श्री गणेश का एक दांत टूट गया। तब क्रोधित होकर श्री गणेश ने टूटे दांत से गजमुखासुर पर ऐसा प्रहार किया कि वह घबराकर चूहा बनकर भागा लेकिन गणेशजी ने उसे पकड़ लिया। मृत्यु के भय से वह क्षमा मांगने लगा तब श्री गणेश ने मूषक रूप में ही उसे अपना वाहन बना लिया।
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