Delhi MCD Ward Committee Election :दिल्ली नगर निगम (MCD) में स्थाई समिति के लिए वार्ड कमेटी के सदस्यों के चुनाव को लेकर उत्पन्न विवाद ने एक नई राजनीतिक और प्रशासनिक संकट को जन्म दिया है। दिल्ली की मेयर डॉ. शैली ओबेरॉय और नगर निगम कमिश्नर अश्विनी कुमार के बीच इस मुद्दे पर तीखी खींचतान देखने को मिल रही है। यह विवाद न केवल दिल्ली नगर निगम के संचालन में अस्थिरता ला सकता है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर रहा है कि दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में शक्ति संतुलन का मुद्दा कितना संवेदनशील है।
मेयर और कमिश्नर के बीच टकराव की शुरुआत
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 4 सितंबर को होने वाले वार्ड कमेटी के चुनाव के लिए मेयर शैली ओबेरॉय ने पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति से इनकार कर दिया और चुनाव को असंवैधानिक घोषित कर दिया। मेयर ने अपने फैसले का आधार यह बताया कि पार्षदों को नामांकन दाखिल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि केवल एक दिन का नोटिस दिया गया, जिससे कई पार्षदों को नामांकन दाखिल करने में कठिनाई हो सकती है। उन्होंने मांग की कि नामांकन प्रक्रिया के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय दिया जाना चाहिए ताकि सभी पार्षद अपनी उम्मीदवारी सही तरीके से पेश कर सकें।
गृह मंत्रालय का हस्तक्षेप और एलजी की शक्तियों में वृद्धि
इस मुद्दे को और भी जटिल तब बना दिया गया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया, जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) वी.के. सक्सेना की शक्तियों में वृद्धि की गई। इस नए आदेश के अनुसार, एलजी को अब किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या वैधानिक निकाय में सदस्यों की नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया है। यह आदेश न केवल दिल्ली सरकार की शक्तियों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच शक्ति संतुलन को लेकर टकराव कैसे बढ़ रहा है।
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MCD कमिश्नर का आदेश
गृह मंत्रालय के आदेश के बाद, MCD कमिश्नर अश्विनी कुमार ने भी एक आदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि वार्ड कमेटी के सदस्यों का चुनाव तय समय पर, यानी 4 सितंबर को ही होगा। कमिश्नर ने कहा कि यह चुनाव नियत समय पर होगा और इसके लिए पीठासीन अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी। कमिश्नर के इस आदेश से यह स्पष्ट हो गया कि दिल्ली नगर निगम की प्रशासनिक प्रक्रियाओं में मेयर की भूमिका को कम करने की कोशिश की जा रही है, और एलजी तथा कमिश्नर को अधिक शक्तियां दी जा रही हैं।
विवाद के राजनीतिक और प्रशासनिक प्रभाव
यह विवाद दिल्ली की राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य में बड़ा प्रभाव डाल सकता है। एक तरफ जहां मेयर और दिल्ली सरकार के पास चुनाव को टालने का आधार था, वहीं दूसरी तरफ गृह मंत्रालय और MCD कमिश्नर का रुख यह दिखाता है कि केंद्र सरकार दिल्ली नगर निगम के मामलों में सीधे हस्तक्षेप कर रही है। यह स्थिति दिल्ली की राजनीतिक स्थिति को और अधिक जटिल बना सकती है, और इसे राजनीतिक उथल-पुथल का कारण भी बन सकती है।
MCD में संभावित हंगामा
चूंकि चुनाव को अब 4 सितंबर को ही कराने का निर्णय लिया गया है, इसलिए यह आशंका बढ़ गई है कि MCD में बड़ा हंगामा हो सकता है। मेयर और कमिश्नर के बीच इस टकराव के कारण निगम की बैठकों में राजनीतिक तनाव और बढ़ सकता है, जिससे निगम की सामान्य कार्यवाही प्रभावित हो सकती है। MCD में सत्ता का संतुलन पहले ही अस्थिर हो चुका है, और यह विवाद इसे और अधिक जटिल बना सकता है।
शक्ति संतुलन का मुद्दा
यह विवाद दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे में शक्ति संतुलन के मुद्दे को भी उजागर करता है। दिल्ली की सरकार और केंद्र सरकार के बीच पहले से ही एक अस्थिर संबंध रहा है, और यह विवाद इसे और अधिक तनावपूर्ण बना सकता है। एलजी को दी गई नई शक्तियों से यह स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार दिल्ली के मामलों में अधिक हस्तक्षेप करने की दिशा में बढ़ रही है, जो कि दिल्ली सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति हो सकती है।
दिल्ली नगर निगम में स्थाई समिति के लिए वार्ड कमेटी के सदस्यों के चुनाव को लेकर उपजा विवाद न केवल एक प्रशासनिक मुद्दा है, बल्कि यह दिल्ली की राजनीति में शक्ति संतुलन और केंद्रीय और राज्य सरकार के बीच के संबंधों का भी प्रतीक है। मेयर और MCD कमिश्नर के बीच इस टकराव ने दिल्ली की राजनीतिक स्थिति को और अधिक अस्थिर कर दिया है, और आने वाले दिनों में इस विवाद का और अधिक विस्तार होने की संभावना है। यह विवाद यह भी दिखाता है कि दिल्ली में प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और समयबद्धता की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण है।