Janeoo: सनातन धर्म में वैसे तो कई प्रकार के रीति-रिवाज और परंपरा है जो साधारण से व्यक्ति को पवित्र बना कर भगवान से जुडने का माध्यम होते हैं। हिन्दू धर्म में कई तरह के व्रत और नियम किए जाते हैं। जिनका सीधा लक्ष्य एक ही होता है वह हैं मोक्ष यानि मुक्ति प्राप्त करना। सभी तरह के नियम और परम्परायों में “यज्ञोपवीत संस्कार” सबसे मुश्किल और पवित्र परंपरा मानी जाती है। यज्ञोपवीत को जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है।
क्या होता है जनेऊ ?
हिन्दू धर्म में 24 संस्कार होते हैं। इन सभी संस्कारों में से एक उपनयन संस्कार होता है। उपनयन संस्कार का अर्थ होता है “ब्रह्म यानि ईश्वर के निकट ले जाना”। इस संस्कार के अंदर ही जनेऊ पहना जाता है। जनेऊ के कुल 9 तार होते हैं। हर एक तार में 3-3 तार होते है। मनुष्य के शरीर में कुल 9 निष्कासन मार्ग हैं। 1 मुँह, 2 कान, 2 नासिक के छेद, 2 आँखों के छेद, 1 मूत्रद्वार और 1 गुदाद्वार।
क्या होता है जनेऊ संस्कार?
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जनेऊ के 9 तार इन 9 मार्गों को ही दर्शाते हैं। जिसक अर्थ होता है की हम अच्छा बोलेंगे, अच्छा सुनेंगे, अच्छा देखेंगे। जनेऊ की जो तीन तार होती हैं। वह ब्रह्म, विष्णु, महेश और सत्व, रज, तम का प्रतीक होती हैं। जनेऊ में कुल 5 गाँठे लगाई जाती हैं। जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को दर्शाती है। साथ ही 5 कर्म, 5 ज्ञानेन्द्रिय और 5 यज्ञों को भी बताती है।
क्या हर कोई जनेऊ पहन सकता है ? Janeoo
पुराने समय में जनेऊ संस्कार वर्ण व्यवस्था पर आधारित होता था। माना जाता था जब कोई बच्चा ज्ञान हासिल करने योग्य हो जाए तब उसका जनेऊ संस्कार कर देना चाहिए। वर्ण व्यवस्था में तीन जाति होती थी। सबसे पहले ब्राह्मण फिर क्षत्रिय उसके बाद वैश्य और सबसे नीची शूद्र। ब्राह्मण के बच्चे का 8 वर्ष की आयु में जनेऊ संस्कार किया जाता था।
क्षत्रिय का 11 वर्ष की आयु में और वैश्य के बच्चे का 25 वर्ष की आयु में । शूद्र जाति के लिए जनेऊ पहनना वर्जित माना जाता था। जिस बच्चे का जनेऊ संस्कार नहीं होता था उसे मूर्ख और हीन समझा जाता था। साथ ही उसे शूद्र जाति का भी माना जाता था।
कैसे किया जाता है जनेऊ संस्कार ? Janeoo
जब किसी व्यक्ति का जनेऊ संस्कार होता है तो पूरी विधि-विधान और नियम से जनेऊ पहनाने की प्रक्रिया की जाती है। जिस व्यक्ति का जनेऊ संस्कार होता है उसका मुंडन किया जाता है। पवित्र जल से स्नान कराकर उसके सिर पर चंदन केसर का लेप किया जाता है। साफ और नई सफेद धोती पहनाकर उसे बैठा दिया जाता है।
जनेऊ पहनने वाले से सबसे पहले गणेश जी की विधिवत पूजा कराई जाती है। उसके बाद सभी देवी-देवतायों की भी पूजा की जाती है। उसके बाद सूत से बना जनेऊ बाएं कंधे के ऊपर और दायें हाथ के नीचे पहनाया जाता है। इस तरह जनेऊ संस्कार पूरा होता है।
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जनेऊ पहनने के नियम
जनेऊ संस्कार होने का अर्थ ये नहीं होता की आप उसे पहनने के बाद असभ्य जीवन जी सकते हैं। असली तप जनेऊ पहनने के बाद ही शुरू होता है। जनेऊ को पवित्र बनाए रखने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है और नियमों का पालन भी करना पड़ता है।
शौच क्रिया करते वक्त जनेऊ को कान के ऊपर कर लेना चाहिए ताकि वह कमर से ऊपर हो जाए और अपवित्र न हो पाए। हाथ अच्छे से धोकर शुद्ध होने के बाद ही कान से नीचे उतारे।
जनेऊ पहनकर मास-मदिरा या कोई तामसिक चीज का सेवन नहीं करना चाहिए।
अगर जनेऊ का कोई तार टूट जाए तो वह खंडित हो जाता है। उसके बाद आने वाली पूर्णिमा के दिन जनेऊ को बदलकर दूसरा पहन लेना चाहिए।
हर 6 महीने बाद जनेऊ को पवित्र करते रहना चाहिए या फिर बदलते रहना चाहिए।
सहवास के दौरान जनेऊ उतार देना चाहिए।
अगर आपके घर में किसी की मृत्यु हो जाए तो जनेऊ अपवित्र हो जाता है। मृत व्यक्ति की तेहरवीं के बाद जनेऊ को बदलकर पहन लेना चाहिए।
परिवार में किसी बालक का जन्म हो तो भी जनेऊ अपवित्र हो जाता है। नवजात बालक के नामकरण संस्कार के बाद जनेऊ पवित्र कर ले या बदलकर पहन ले।