Chirag Paswan On Caste Census: चिराग पासवान, जो लोजपा (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री हैं, हाल के दिनों में अपने बयानों और कदमों से यह स्पष्ट कर रहे हैं कि उन्होंने केंद्र में सत्ता में आने के बाद फ्रंट फुट पर खेलने का फैसला किया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वह किसके खिलाफ खेल रहे हैं? राजनीति का खेल बड़ा ही अनोखा होता है, जहां खिलाड़ी कभी-कभी अपनी ही टीम के खिलाफ गोल करने लगता है। चिराग पासवान की राजनीतिक चालों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह राजनीति में अपने कद को बढ़ाने के लिए विशेष ध्यान दे रहे हैं।
जब तक वह एनडीए से दूर थे, तब तक वह खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते थे, लेकिन जैसे ही उन्हें केंद्र सरकार में जगह मिली, वह ‘वोकल फॉर लोकल’ हो गए, जो कि प्रधानमंत्री मोदी का ही मंत्र है। उन्होंने अपनी लोकल कंस्टिट्यूएंसी के लिए इतनी जोर-शोर से आवाज उठानी शुरू कर दी है कि यह नारा देने वाले ही सांसत में आ गए हैं।
चिराग पासवान के हालिया बयान और रुख | Chirag Paswan On Caste Censusu
चिराग पासवान ने हाल ही में एससी-एसटी की जातियों में उपवर्गीकरण, वक्फ संशोधन विधेयक, और लेटरल एंट्री से केंद्रीय सचिवालय में भर्तियों के खिलाफ आवाज बुलंद की है। इसके अलावा, वह जाति जनगणना के पक्ष में भी बैटिंग कर रहे हैं। वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध उन्होंने सीधे तौर पर नहीं किया, लेकिन उन्होंने इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की, जो कि विपक्ष की मांग थी। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, ने इन सभी मुद्दों को उठाया था। चिराग ने इन मुद्दों पर राहुल गांधी की लाइन का समर्थन किया है।
अब, जब राहुल गांधी ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देकर कहा है कि वह देशव्यापी जाति जनगणना करवाएंगे, तो चिराग पासवान ने भी इस मुद्दे पर राहुल के सुर में सुर मिला दिया है।
चिराग पासवान और उनकी पार्टी के समर्थक यह कह सकते हैं कि उनके सभी मुद्दों पर स्वतंत्र विचार हैं और इसके पीछे किसी की प्रेरणा नहीं है। लेकिन जब एक के बाद एक मुद्दों पर सत्ताधारी घटक दल का स्टैंड विपक्ष की रणनीति के साथ मेल खा जाए, तो सवाल उठते हैं। सवाल यह है कि चिराग किसके खिलाफ खेल रहे हैं और किसके लिए?
जाति जनगणना पर चिराग का रुख
चिराग पासवान ने जाति जनगणना पर कहा है कि उनकी पार्टी का हमेशा से स्पष्ट रुख रहा है। उन्होंने कहा, “हम जाति जनगणना चाहते हैं क्योंकि कई बार केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें जाति को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाती हैं। ये योजनाएं विभिन्न जातियों को मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं।”
चिराग ने यह बयान रांची में दिया, जो कि राहुल गांधी के प्रयागराज में जाति जनगणना पर दिए बयान के ठीक अगले दिन का था। यह पैटर्न पहले भी देखा गया है कि विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चिराग पासवान की प्रतिक्रिया बाद में आती है।
चिराग का विरोध और सरकार में उनकी भूमिका
सरकार में शामिल होने का मतलब यह नहीं होता कि हर फैसले का समर्थन किया जाए। लोकतांत्रिक भावना को बल तभी मिलेगा जब विशेष मुद्दों पर विपक्ष ही नहीं, सत्ता पक्ष के अंदर से भी आवाजें उठें। लेकिन यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि चिराग पासवान सरकार में रहते हुए किस तरह से अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।
चिराग की राजनीतिक ताकत और भविष्य
चिराग पासवान के पास वर्तमान में पांच सांसद हैं, जो राजनीतिक दृष्टि से बहुत बड़ी संख्या नहीं है। उनके प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू उनसे कई गुना ज्यादा ताकतवर हैं। फिर भी, चिराग पासवान का एक विशेष वोट बैंक है, जो उनके राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में चिराग किस तरह से अपनी राजनीति को आगे बढ़ाते हैं और क्या वह एनडीए में अपनी भूमिका को और मजबूत कर पाते हैं।