टीपू सुल्तान की हकीकत क्या है? वो कौन सा राज है जिसे छुपा कर रखा गया है। चलिए आज हम आपको वह सच्चाई बताते हैं जिसे ना सिर्फ छुपाया गया बल्कि दुनिया का सामने भी नहीं आने दिया गया।
आपने अभी तक टीपू सुल्तान की अच्छी ही छवि देखी और सुनी होगी। 90 के दशक में टीपू सुल्तान की छवि सुधारने के लिए एक टीवी सीरियल तक हमारे देश में बना जिसमें टीपू सुल्तान की किरदार को काफी बड़ा चढ़ाकर दिखाया गया।
क्या है असल हकीकत
1790 नरक चतुर्दशी। यह मध्यरात्रि है। टीपू सुल्तान के पास अपने सबसे वफादार और क्रूर साथियों के साथ एक सेना थी, जो मेलुकोट के श्री चेलुवरया स्वामी के मंदिर में प्रवेश करती है।
वहीं नरक चतुर्दशी के अवसर पर आयोजित भगवान जुलूस में लगभग 1000 श्रद्धालु शामिल हुए। रात की पूजा के बाद वे आराम करने की तैयारी कर रहे थे।
टीपू ने आकर मंदिर के सभी द्वार बंद कर दिए और 1000 भक्तों में से 800 लोगों को बंद कर दिया और उसने अपनी सेना के बल से नरसंहार किया और सभी का कत्ल कर दिया गया बच्चों को भी नहीं बख्शा। उसने अपने जनानखाने के लिए शेष 200 सुंदर महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया।
अगली सुबह दीपावली पद्य का दिन था। वह मेलुकोट मंदिर को तोड़ देता है और उसकी विशाल संपत्ति को लूट लेता है। लूट को ले जाने के लिए 26 हाथियों और 180 घोड़ों की जरूरत थी। भले ही इसे इतने लंबे समय तक ले जाने में 3 दिन लगे।
यही कारण है कि आज भी मेलुकोटे के कई परिवार (मांड्याम अयंगर कहलाते हैं) उस अंधेरी दिवाली की भयानक घटनाओं के कारण इस त्योहार को नहीं मना रहे हैं।
जयललिता भी इसी समुदाय की थीं इसलिए उन्होंने भी कभी दिवाली का त्योहार नहीं मनाया। क्या उनके पूर्वज (मेलकोट अयंगर) 800 नरसंहारों में शामिल नहीं थे? वह कैसे भूल सकती है?
इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान को एक सुंदर, गंभीर, शांत और बहादुर व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया है। लेकिन लंदन के पुस्तकालय में टीपू की वास्तविक छवि बहुत अलग है। रूप में दानव कहे जाने वाले इस सुल्तान ने न केवल मेलुकोट मंदिर बल्कि दक्षिण भारत के लगभग 25 मंदिरों की संपत्ति भी लूट ली थी।
टीपू हमेशा बड़े-बड़े त्योहारों पर नरसंहार और धन की लूट की घटनाओं को अंजाम देता था। क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि उन दिनों भक्त बड़ी संख्या में इकट्ठा होते थे और उन सभी के पास अधिक धन और प्रसाद के रूप में चांदी और सोना होता था। उन दिनों मंदिर में ही सारा धन और अनाज इकट्ठा करने की प्रथा थी।