Kamakhya Temple : भारत में प्रसिद्ध 108 शक्ति पीठों में से प्राचीन कामाख्या मंदिर का अपना ही एक अलग महत्व है। असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर में, कोई मूर्ती नहीं है बल्कि यहां देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है, जिसे गुफा के एक कोने में रखा गया है। इस मंदिर की उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी, जिसे कूचबिहार के राजा नारायण ने 16वीं शताब्दी में फिर से बनवाया था।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कहा जाता है कि इस मंदिर की जगह मां की योनि गिरी थी। इसके अलावा ये मंदिर और भी कई रहस्यों से घिरा हुआ है। इस मंदिर में वार्षिक प्रजनन उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसे लोग अंबुबासी पूजा के नाम से भी जानते है। माना जाता है कि इस दौरान देवी का मासिक धर्म होता है और इसलिए तीन दिनों तक मंदिर बंद रहने के बाद, चौथे दिन खुलता है। इस पर्व के दौरान, कामाख्या के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं होती है। इस दौरान साधू अलग-अलग गुफाओं में बैठक, शक्ति प्राप्त करने के लिए साधना करते हैं। माँ के भक्त यहां दूर-दूर से इस मंदिर के दर्शन करने आते है और घंटों लाइन में खड़े होकर, मां के मासिक धर्म के खून से लिपटी हुई रूई को प्राप्त करते है।
मंदिर के पीछे की कहानी
कहा जाता है कि भगवान राजा दक्ष अपनी बेटी के साथ भगवान शिव का विवाह नहीं कराना चाहते थे और इस वजह से उन्होंने, उन्हें यज्ञ का निमंत्रण भी नहीं दिया था। सती को जब इस बात का पता चला तो उनसे शिव का ये अपमान देखा नहीं गया और वह गुस्से में आग में कूद गई। शिव को जब इस बात का पता चला, तो तब उन्होंने दुखी होकर सती को गोद में लेकर तांडव करने लगे। जिसके बाद देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी, तब विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती की लाश के 108 टुकड़े कर दिए, जो अलग-अलग हिस्सों में जाकर गिर गए। इसके बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया।
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