बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से नौवां ज्योतिर्लिंग है, जो झारखंड के देवघर में स्थित हैं। बता दें कि ये भारत की पहली ऐसी जगह हैं जो ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ शक्तिपीठ भी है। माना जाता हैं कि बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना खुद भगवान विष्णु ने की थी, इसलिए यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं और इसी वजह से कई लोग इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहते हैं।
इसलिए कहते हैं इस स्थान को हार्दपीठ
पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था और जब ये बात देवी सती को पता चली तो उन्होंने उन्हें जाने की बात कही। जिस पर शिवजी ने कहा, बिना निमंत्रण कहीं भी जाना उचित नहीं हैं लेकिन सतीजी उनकी बात नहीं मानी और अपने पिता के घर चली गई। जहां अपने पति भोलेनाथ का घोर अपमान वो सहन नहीं कर पाई और उन्होंने यज्ञ कुंड में प्रवेश कर लिया।
सती की मृत्यु की सूचना पाकर शिव जी अत्यंत क्रोधित हुए और माँ सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। जिनको शांत करने के लिए श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे। कहा जाता है कि जिस-जिस स्थान पर सती के अंग गिरे, उस जगह को शक्तिपीठ का नाम दिया गया और जिस स्थान पर देवी सती का हृदय गिरा था उस स्थान को हार्दपीठ के नाम से जाना जाता है। इसलिए बैद्यनाथ धाम देवघर को हार्दपीठ के नाम से जाना जाता है।