Recently updated on September 17th, 2024 at 05:07 pm
Milarepa on Kailash Parvat Story : कैलाश पर्वत, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके शिखर पर अभी तक केवल एक ही संत पहुंच पाए है। जी हां, माना जाता है कि तमाम प्रयासों के बाद भी कैलाश पर्वत पर चढ़ना असंभव होता है। इसी वजह से इसे ‘रहस्यमयी पर्वत’ नाम से भी जाना जाता हैं।
कैलाश पर्वत को भारत के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था का प्रतीक माना जाता हैं। 6,656 मीटर की ऊंचाई वाले इस पर्वत को लोग बस दूर से ही देख सकते है।
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सुपरनैचुरल ताकतों का होता है अनुभव
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कैलाश पर्वत के पास स्थित कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का निवास स्थान माना गया हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव अपने परिवार के साथ यहीं पर रहते है। इसी वजह से आज तक इस पर कोई नहीं चढ़ पाया। जो भी इस पर चढ़ने का प्रयास करता है उसे सुपरनैचुरल ताकतों को अनुभव होता है। यहां तक की ये भी दावा किया जाता है कि जब रूस के एक पर्वतारोही ने इस पर चढ़ने का प्रयास किया था तो उनका दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा। उन्हें अचानक बहुत कमजोरी महसूस हुई। मन में ऐसा ख्याल आया कि उन्हें यहां और नहीं रुकना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने ये भी अनुभव किया कि, यहां पर समय तेजी से बीतता है। साथ ही यहां पहुंच कर कई यात्रियों और वैज्ञानिकों ने ये भी महसूस किया कि, यहां उनके बाल और नाखूनों बहुत तेजी से बढ़ते है। हालांकि, अभी तक वैज्ञानिक इसके पीछे की वजहों को ढूंढ नहीं पाए हैं।
शिखर पर चढ़ने वाला रहस्यमय इंसान
आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि इस रहस्यमयी पर्वत पर केवल एक ही संत चढ़ पाए हैं। दरअसल, कहा जाता है कि तिब्बत के रहवासी संत मिलारेपा जी (Milarepa on Kailash Parvat Story) कैलाश पर्वत पर चढ़ने वाले पहले व्यक्ति है। मिलारेपा जी ने अपनी साधना को पूरा करने के लिए कैलाश पर्वत की यात्रा की थी। उन्होंने अपना अध्ययन पूज्य गुरु श्री मार्पा जी की छत्रछाया में किया था। उन्होंने अपना पूरा शरीर श्री मार्पा को समर्पण कर दिया था, जिसके बदले में उन्होंने उनसे थोड़ा सा खाना, कपड़े और शिक्षा का दान मांगा। दरअसल, मिलारेपा जी ने कैलाश पर्वत की यात्रा गुरु जी मार्पा की आज्ञा में ही पूरी की थी। हालांकि, इस यात्रा में उनके साथ कुछ अनुयायी भी मौजूद थे। लेकिन केवल वो ही इस यात्रा को पूरा कर पाएं।
एक और साधु ने किया था पर्वत (kailash parvat) पर चढ़ने का फैसला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा जाता है कि उन्होंने (Milarepa on Kailash Parvat Story) ईस्वी 1093 से कैलाश पर्वत पर पश्चिम दिशा की ओर से चढ़ाई करनी शुरू की थी। इस यात्रा के बीच उनकी मुलाकात एक बोन-धर्म के जानेमाने प्रचारक नरोवान जी से हुई। नरोवान जी ने मिलारेपा जी के सामने एक शर्त रखी और कहा- इस शिखर पर जो पहले पहुंचेगा, उसका कैलाश पर्वत पर वर्चस्व होगा। मिलारेपा जी ने ये शर्त मान ली। इसके बाद दोनों ने एक साथ पर्वत की यात्रा शुरू कर दी।
अब हुआ ये कि नरोवान जी तो बिना रूके आगे बढ़ते चले जा रहे थे और थोड़ी देर में ही वो पर्वत के शिखर पर पहुंचने वाले थे। लेकिन मिलारेपा जी अभी तक आराम ही कर रहे थे। इसके बाद उनके किसी अनुयायी ने उन्हें जगाया और बताया कि नरोवान जी तो पर्वत के शिखर पर पहुंचने वाले हैं और आप अभी तक आराम कर रहे है। फिर मिलारेपा जी ने काफी तेजी से पर्वत की चढ़ाई शुरू कर दी और कुछ ही समय में वह शिखर के निकट पहुंच गए। इस बीच नरोवान जी भी शिखर की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे थे। तभी सूर्योदय की पहली किरण उनके चेहरे पर पड़ी। जो इतनी तीव्र थी कि वो पीछे हट गए। इस बीच मिलारेपा जी कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुंच गए।
सालों तक कैलश पर ही मिलारेपा जी ने की थी साधना
नारोवान जी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि उन्होंने (Milarepa on Kailash Parvat Story) अपराध भाव से इस पर्वत को चढ़ने का प्रयास किया था। फिर उन्होंने मिलारेपा जी से माफी मांगी। इस तरह मिलारेपा जी, कैलाश पर्वत के शिखर पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति बन गए। कहा जाता है कि इसके बाद मिलारेपा जी ने कई सालों तक कैलाश पर्वत पर ही साधना की। साधना करने के बाद फिर वह वापस लौटकर अपने गुरु मार्पा जी के पास आए। इसके बाद मार्पा जी ने उन्हें एक अंधेरी कोठरी में बंद कर दिया। जहां उन्होंने अपनी तंत्र विद्या को पूर्ण किया। लेकिन अभी भी उनकी विद्या सम्पूर्ण नहीं हुई थी, जिसके बाद वह ऋषि मार्पा के गुरु श्री नरोपा जी के पास गए। जहां उन्होंने सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त की ।
हालांकि, कहा जाता है कि मिलारेपा जी अभी भी जीवित है और वो कैलाश पर्वत की किसी गुफा में बैठकर तपस्या कर रहे हैं। अब ये सच है या नहीं। इसके बारे में कोई नहीं जानता।
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