Law Minister Kiren Rijiju: कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को कहा, ‘जब न्यायपालिका को नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं होता है, तो ‘ज्यूडिशियल एक्टिविज्म’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है।
न्यायपालिका और विधायिका में टकराव कोई नई बात नहीं है। अक्सर दोनों के बीच टीका-टिप्पणी चलती रहती है। इसी कड़ी में देश के कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोमवार को अहमदाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायपालिका को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा, ‘जब न्यायपालिका को नियंत्रित करने का कोई तरीका नहीं होता है, तो ‘ज्यूडिशियल एक्टिविज्म’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। कई न्यायाधीश ऐसी टिप्पणियों को पारित करते हैं जो कभी भी उनके निर्णय का हिस्सा नहीं बनते हैं। एक न्यायाधीश के रूप में आप व्यावहारिक कठिनाइयों, वित्तीय सीमाओं को नहीं जानते हैं।’
कोर्ट को सबकुछ समझने की जरूरत
रिजिजू ने कहा, जजों को जो भी कहना है उसे ऑर्डर के जरिए कहना चाहिए न की टिप्पणियों के जरिये। उन्होंने इसके लिए एक उदाहरण भी दिया। उन्होंने कहा, अगर एक जज कहता है कि कचरा को यहां से हटाकर वहां डालो। यहां इन लोगों का अपॉइंटमेंट आप दस दिन में पूरा करो। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर को कोर्ट में बुलाएंगे और कहेंगे कि ये करो। ये सारे काम एग्जिक्यूटिव के हैं, आप जज हैं। आपको नहीं पता कि वहां काम करने में क्या परेशानी आ रही है। उस संस्थान की वित्तीय स्थिति क्या है। इसी तरह कोर्ट ने कोरोना काल में भी कई ऐसी टिप्पणियां कीं जो व्यवहारिक नहीं थीं।
न्यायपालिका को सुधारने का उपाय नहीं
किरेन रिजिजू यहीं नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ये भारत में लोकतंत्र के तीन स्तंभ हैं। कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्यों में बंधे हैं और न्यायपालिका उन्हें सुधारती है, लेकिन जब न्यायपालिका भटक जाती है तो उन्हें सुधारने का कोई उपाय नहीं है।
हाल ही में कांग्रेस के लिए दिया था विवादित बयान
किरेन रिजिजू पिछले कुछ महीनों से अपनी बात खुलकर रख रहे हैं। उन्होंने हाल ही में कांग्रेस पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी हमला बोला था। पिछले गुरुवार को उन्होंने कहा था कि भारत अब भी ‘नेहरू की गलतियों की कीमत चुका रहा है। तब उनके इस बयान की काफी निंदा हुई थी।