Friday, November 22, 2024
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टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार के खिलाफ रद्द नहीं होगी FIR, बॉम्बे HC ने किया इनकार..जानें पूरा मामला

टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने टी-सीरीज के मालिक भूषण कुमार के खिलाफ दर्ज रेप की एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया। बता दें कि 26 अप्रैल को बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस एएस गडकरी और पीडी नाइक वाली बेंच जुलाई 2021 में उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने वाली भूषण कुमार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने शिकायतकर्ता की सहमति के बावजूद FIR रद्द करने से इनकार कर दिया।

जानें पूरा मामला

न्यायालय ने कहा है कि केवल शिकायतकर्ता की सहमति के आधार पर मामले को रद्द नहीं किया जा सकता है और इस मामले में और जांच की आवश्यकता है। गौरतलब है कि भूषण कुमार पर जुलाई 2021 में एक महिला ने रेप का आरोप लगाया था। महिला ने आरोप लगाया था कि भूषण कुमार ने फिल्म उद्योग में काम दिलाने के बहाने उसका यौन उत्पीड़न किया। कुमार ने आरोपों से इनकार किया था और बॉम्बे हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर उनके खिलाफ मामला खत्म करने की मांग की थी। कुमार के वकील निरंजन मुंदरगी के अनुसार, 2017 में कथित बलात्कार के चार साल बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि उसे मामले को रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है और उसने कुमार के साथ समझौता किया है।

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अदालत ने क्या कहा? 

हालांकि, अदालत ने मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि इस मामले में और जांच की आवश्यकता है। कोर्ट ने माना है कि किसी मामले को रद्द करना पार्टियों के बीच महज समझौते पर आधारित नहीं हो सकता है। अदालत ने आगे कहा कि इस मामले में बलात्कार के गंभीर आरोप शामिल हैं और यह पता लगाना आवश्यक है कि शिकायतकर्ता ने अपनी सहमति स्वेच्छा से दी थी या दबाव में। कोर्ट के फैसले से एक कड़ा संदेश जाता है कि यौन उत्पीड़न के मामलों से समझौता नहीं किया जा सकता है और कानून को अपना काम करना चाहिए।

यह ध्यान देने योग्य है कि बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण मिश्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुरूप है, जहां अदालत ने कहा था कि एक आपराधिक मामले को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है पार्टियों के बीच एक समझौता हो गया। बंबई उच्च न्यायालय का निर्णय यौन उत्पीड़न के मामलों में एक संवेदनशील और सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। कोर्ट के फैसले ने एक कड़ा संदेश दिया है कि पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए और यौन उत्पीड़न के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।

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