समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिका पर सुनवाई का आज 26 अप्रैल को पांचवां दिन था। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग वाली 20 याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखे हुए हैं।
सुनवाई की शुरुआत एडवोकेट करुणा नंदी की दलील से हुई। उन्होंने धर्मनिरपेक्ष विधान विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और ओसीआई धारकों को पंजीकरण के आधार पर पात्रता प्रदान करने के अधिकार सहित घोषणा की मांग की, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि जनगणना से पता चला है कि देश में कम से कम 4.8 मिलियन ट्रांसजेंडर लोग हैं, जो एक कम करके आंका गया है।
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याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट अमृतानंद चक्रवर्ती, जिन्होंने डेनमार्क में शादी की, लेकिन भारत में दंपत्ति संयुक्त रूप से बच्चे को अपनाने में सक्षम नहीं हैं, जैसे कि विषमलैंगिक जोड़े इसे भेदभावपूर्ण बनाते हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील अमृतानंद चक्रवर्ती ने कोर्ट से कहा कि परिवारों को अनाथ बच्चों को रखने का अधिकार है। गोद लेने के कानून में समान लिंग के जोड़ों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का बहिष्कार नहीं होना चाहिए। उनको भी विपरीत लिंग के जोड़े के समान सम्मान और सुरक्षा पाने का अधिकारी है।
लंच के बाद सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने सेम जेंडर मैरिज केस में दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि अदालत उस मामले की सुनवाई कर रही है जो बहुत ही जटिल सामाजिक प्रभाव के साथ है। उन्होंने तर्क दिया कि विवाह क्या होता है और किसके बीच होता है, इस मामले को संसद के पास छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि कई क़ानूनों पर अनपेक्षित प्रभाव पड़ते हैं, जबकि अदालत कानून की मौलिक प्रकृति को नहीं बदल सकती है और विधायी मंशा को नहीं बदल सकती है। न केवल सामाजिक स्वीकृति अभी तक नहीं हुई है, याचिकाओं की मांगें बहुत अस्पष्ट हैं, इसलिए सामाजिक रूप से जटिल मुद्दे इसे विधायिका पर छोड़ देते हैं। मेहता ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि जिन देशों में समान लिंग विवाह कानूनी है, वहां विधायिका ने हस्तक्षेप किया।
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