सुदेश भोंसले – दुनिया जिन्हें मशहूर गायक और मिमिक्री आर्टिस्ट के तौर पर जानती और पहचानती है, इसी लाजवाब प्रतिभा से प्रभावित होकर अमिताभ बच्चन ने खुद कहा था अब मेरे गाने मैं नहीं, सुदेश गाएगा।
डबिंग आर्टिस्ट और उसके पेरेंट्स को शुरुआती दिनों में अहसास तक नहीं था सुदेश कभी इस क्षेत्र में आएंगे। इनके पिता 1960- 80 के दशक में मशहूर पेंटर रहे और एन आर भोसले आर्ट के नाम से फिल्मों के होर्डिंग्स और बैनर -पोस्टर बनाते रहे। ये वो दौर था जब हाथों से ही फिल्मों के पोस्टर डिजाइन किए जाते थे। एक बार सुदेश ने उत्सुकतावश पूछ लिया कि क्या वे कुछ स्केच बना सकते हैं? पिता के हां कहते ही पहली बार उन्होंने राजेश खन्ना और हेमा मालिनी का स्केच इतना हू – ब- हू बनाया कि सभी दंग रह गए। फिर तो पिता ने अपने स्टूडियो में ही उन्हें काम पर रख लिया, इस तरह 1974 से 1982 तक सुदेश अपने पिता को असिस्ट करते रहे। जिससे सबको यही लगने लगा कि आगे चलकर सुदेश इसी बिजनेस को संभालेंगे और पेंटिंग ही करेंगे।
इनकी मां और नानी क्लासिकल गायिका थीं, तो घर में सांगीतिक माहौल था, फिर रेडियो से अत्यधिक लगाव भी, इस तरह इन्हें कब गाने याद हो जाते हैं और जुबां पे चढ़ जाते पता ही नहीं चलता। खास बात यह होती कि ये जिस भी कलाकार के गाने गुनगुनाते उसी की आवाज में ढल जाते।
कॉलेज के दिनों में दोस्तों ने इनके अलग-अलग अभिनेताओं की आवाजें निकालना और सिंगरों कि नकल करने की क्षमता को पहचान लिया और इनसे डायलॉग बोलने और गाने की फरमाइश करने लगे। उस वक्त के अन्य कोई मिमिक्री कलाकार अमिताभ बच्चन की आवाज नहीं निकाल पाता था और सुदेश, अमित जी की आवाज इतनी बखूबी निकालते कि पहचाना मुश्किल हो जाता। धीरे धीरे ये आसपास काफी फेमस हो गये। तब इन्होंने कई फिल्मी गानों की किताबें और सीडीज खरीदी और उन्हें रटना शुरू किया। इनकी मांग भिन्न-भिन्न शहरों और ऑर्केस्ट्रा ग्रुपों में होने लगी। साथ ही साथ ये नाटकों में अभिनय भी करने लगे। पर इनके पिता इन सब से अनजान थे।
एक बार सुदेश ने अपने माता पिता को प्ले देखने के लिए आमंत्रित किया और जब तालियों की गड़गड़ाहट में सुदेश की वाहवाही सुनी तब जाकर पिता को पता चला कि उनका बेटा इन सब कलाओं में भी माहिर है। आगे चलकर मशहूर आर्केस्ट्रा ग्रुप melody makers ने इन्हे अपने साथ जोड़ लिया और ढेरों शो किए। इसी सिलसिले में किशोर कुमार के साथ इनके विदेशों में शो हुए और ये किशोर कुमार के चहेते बन गए। आशा भोसले के साथ भी कई सालों तक इनके शोज होते रहे। इन्होने कई साल सन्जीव कुमार और अनिल कपुर के लिये मिमिक्री आर्टिस्ट के तौर पर डबिन्ग भी की।
राहुल देव बर्मन ने इन्हें पहला ब्रेक 1986 में दिया पर अमिताभ बच्चन की फिल्म “हम” (1990) के गाने ‘जुम्मा चुम्मा दे दे’ ने ऐसी लोकप्रियता दी, की दूसरे अभिनेताओं पर फिल्माए जाने वाले गाने भी अमिताभ बच्चन की आवाज में रिकॉर्ड होने लगे। जैसे-गोविंदा का।।।शर्माना छोड़ डाल।। आजू बाजू मत, संजय दत्त का-हसीना मान जाएगी।। , जॉनी लीवर का- मिस्टर लोवा लोवा तेरी आंखों का जादू। यहां तक की जया बच्चन को सालों तक विश्वास नहीं हुआ कि जुम्मा चुम्मा दे दे… जैसे गाने सुदेश ने गाए हैं।
माहिया…सेशावा शावा, रूप है तेरा सोना सोना, मेरी मखना.., बड़े मियां बड़े मियां…., सोनी तेरी चाल सोनी वे….,नाना नाना नारे….गाने ने इन्हे अमिताभ की आवाज के रूप में स्थापित कर दिया, हालांकि अजूबा फिल्म में अमिताभ के लिए ये काफी पहले ही – या अली या अली….मेरा नाम है अली….और अन्य दो गाने गा चुके थे। उसी वक्त अमिताभ ने उनसे मिलते हुए यह कहा था कि हमारी और आपकी आवाज काफी मिलती है, मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैंने ये गाने कब गाए। तब सुदेश ने उन्हीं की आवाज में उनका अभिवादन किया । फिर अमिताभ के कहने पर उन्होंने उनकी जवानी से लेकर उस वक्त तक की बदलती आवाज में इतने डायलॉग सुनाएं कि अमिताभ बिल्कुल सन्न रह गए, और काफी देर तक कुछ नहीं बोल पाए। फिर उठकर गले लगा लिया।