Recently updated on July 25th, 2024 at 12:42 pm
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी – अपनी तैयारियों तो काफी पहले ही शुरू कर दी थी। लेकिन अब वो समय आ गया है जब इसे और तेज किया जाए। कोशिशें शुरू हो चुकी है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी अपने पुराने फार्म में वापस आने के लिए काफी मेहनत करती नजर आ रही है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा ने खुब सुर्खियां बटोरी और उससे भी ज्यादा चर्चा में इस यात्रा के दौरान रहें हैं कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और खासकर राहुल गांधी का ” टीशर्ट ” । लोकसभा चुनाव के मद्देनजर तीसरा फ्रंट बनाने की कवायद भी दक्षिण भारत से इस बार शुरू होती दिख रही है जिसका कोई भविष्य 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नहीं दिखता। पिछली बार भी कोशिशें हुई लेकिन भारतीय जनता पार्टी के सामने विपक्ष बुरी तरह पीट गया। इस बार तेलंगाना के सीएम केशव चंद्र राव (केसीआर), तीसरा फ्रंट बनाने के लिए हाथ – पांव मारते दिख रहें हैं पर क्या वे कांग्रेस से अलग होकर दिल्ली पहुंच पाएंगे। आशा करता हूं कि इस सवाल का जवाब आप अच्छे से जानते होंगे।केंद्र की सत्ता पर 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा काबिज़ है। भारत की राजनीति में इस समय पीएम नरेंद्र मोदी को टक्कर देने वाला फिलहाल कोई नहीं दिखता और ये बात सच है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने 2014 से भी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। भाजपा ने 2014 के बाद जिस तरह से चुनावों में जीत हासिलि की है वो अद्भुद है। इस तरह देखा जाए तो भारत की राजनीति में फिलहाल भाजपा का दबदबा है। दूर – दूर तक भाजपा के टक्कर में कोई नजर नहीं आता। वहीं दूसरी ओर देश की सबसे पुरानी पार्टी और सर्वाधिक दिनों तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस, चुनाव दर चुनाव सिकुड़ती नजर आ रही है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर एक बहस जारी है कि क्या अगले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस भाजपा को चुनौती देने में सक्षम होगी या भाजपा एक बार फिर से केंद्र की सत्ता पर काबिज होगी, ये समय के गर्भ में है।
कांग्रेस की हालत इस समय उस व्यक्ति जैसी हो गई है जिससे लोग ये सोचकर नाता नहीं रखता चाहता की कहीं वो उनका नुकसान ही न कर दें। कांग्रेस के लिए एक मुहावरा सटीक बैठता है ” उंची दुकान और फीका पकवान “। हाल के वर्षों में कांग्रेस पार्टी के लगातार गिरते ग्राफ ने देश के क्षेत्रिय नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी भूमिका निभाने के सपने देखने के अवसर दिए हैं। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार कांग्रेस के नेतृत्व में काम करने को तैयार नहीं हैं। बिहार में भी नीतिश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ राजद के साथ इसलिए गए क्योंकि वे 2024 में खुद को मोदी के विकल्प के रुप में पेश करना चाहते हैं। नीतिश कुमार को समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का समर्थन भी हासिल है। ये सभी विपक्षी नेता अपने अपने राज्यों में ताकतवर हैं और भाजपा को सीधी टक्कर देने की क्षमता रखते हैं। लेकिन वे ये काम कांग्रेस की बी टीम बनकर नहीं बल्कि कांग्रेस को ही बी टीम बनाकर करना चाहते हैं। अगर ऐसा हो जाता है तो भी किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। दरअसल, देश में पिछले 10 वर्षो में कई ऐसे चुनाव हुए जहां कांग्रेस क्षेत्रियों पार्टियों की पिछली सीट पर बैठकर अपनी लाज़ बचाती नजर आई। कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश तो आम आदमी पार्टी कर ही रही हैं पर पंजाब में केवल सफलता के सहारे गुजरात जैसे बड़े राज्य को जीतने का सपना, सपना ही रह गया। बीआरएस, आप, सीपीआईएम जैसे दल कांग्रेस से दूर रहकर कुछ अलग और प्रभावी करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन अंजाम आप सबको पता ही है कि अगर एक दुकान के एक से ज्यादा दुकानदार हो तो व्यापार घाटे में ही जाता है।
ऐसे सूरत – ए – हाल में 2024 के पहले विपक्ष एक बार फिर बिखरा नजर आ रहा है और वर्तमान परिस्थिति भाजपा के लिए 2024 चुनाव से पहले एक शुभ संकेत है। कांग्रेस भी इस बात से पूरी तरह वाकिफ हो चुकी है कि राहुल गांधी को विपक्ष की अन्य पार्टियां अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इसलिए कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा लेकर देश के लोगों का नब्ज़ टटोलने निकली है। भारत जोड़ो यात्रा किस मकसद से निकाली गई है ये सभी जानते है। लेकिन कांग्रेस की माने तो ये यात्रा राजनीतिक नहीं है। लेकिन आप और मैं इतने समझदार तो जरूर हैं कि इस यात्रा का मतलब ऐसे समय में न समझ पाए जब लोकसभा चुनाव 2024 चुनाव नजदीक आ गया हो। कांग्रेस इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन तो मजबूत करना चाहती है। साथ ही राहुल गांधी को एकमात्र ऐसे नेता के रुप में पेश करना चाहती है जिनमें मोदी का सामना करने की क्षमता है। लेकिन राहुल की समझ और राजनीति का ज्ञान सभी को अच्छी तरह पता है। ये वहीं राहुल गांधी हैं जिन्होंने कई बार ऐसे बयान दिए हैं जिसे सुनकर हंसी तो हंसी कई बार हैरानी भी होती है की आखिर इतने बड़े राजनीति घराने से आने वाला व्यक्ति कई बार काफी छोटी – छोटी बातों को भी क्यों नहीं समझ पाता है। भारत जोड़ो यात्रा क्या है और क्यों निकाली गई है ये जानने के लिए आपको ज्यादा राजनीति की समझ भी नहीं रखनी होगी क्योकि इस यात्रा का मकसद साफ और स्पष्ट है कि कांग्रेस पार्टी अपनी खोई हुई जमीन तलाशने निकली है।
भारत जोड़ो यात्रा के लिए कांग्रेस ने इस यात्रा के लिए उन प्रदेशों को चुना है जहां पार्टी मजबूत है और जहां इस यात्रा को ग्रैंड बनाने में कोई परेशानी न आए। राहुल गांधी भी इस यात्रा के दौरान भाजपा पर विभिन्न मुद्दों को लेकर हमलावर रहे हैं और टीवी तथा अखबारों में सुर्खियां बटोरते रहे हैं। कांग्रेस के लिहाज से देखे तो इस यात्रा ने निश्चित रुप से राहुल गांधी और कांग्रेस में नई जान फूंकी है। लेकिन ये यात्रा कांग्रेस को पुन: सत्ता पर काबिज कर पाएगी ये बड़ा सवाल अभी भी कायम है। दरअसल, इस यात्रा पर गौर करें तो ये मुद्दों के अभाव से जूझती दिखाई देती है। 4 महीने से अधिक समय से चल रही इस यात्रा में आम मुद्दों के अलावा विपक्षी पार्टीयों के समर्थन का भी अभाव रहा है। इसलिए ये कहा जा सकता है कि राहुल को बतौर विपक्षी नेता पेश करने के लिए जारी भारत जोड़ो यात्रा उन्हें सुर्खियां दिलाने में कामयाब जरुर हुई है, लेकिन पार्टी को 10 साल बाद सत्ता में वापस ला दे ऐसी संभावना कम ही दिखती है।