Kalyug is best among all Yugas : हिन्दू धर्म के मुताबिक, समय चार युगों में बटा है, जो है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग। इन चारों युगों में कलयुग को सबसे खराब युग माना जाता है। कलयुग को लेकर एक ऐसी धारणा है कि इस युग में सबसे ज्यादा पाप किए जाते हैं। लेकिन पुराणों में कलयुग को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। आज हम आपको इसी के बारे में बताएंगे।
श्रेष्ठता को लेकर हुआ था विवाद
पुराणों के मुताबिक, एक बार ऋषि-मुनि में इस बात पर बहस हुई कि कौन सा युग (Yuga) सबसे अच्छा है। धीरे-धीरे विवाद इतना बढ़ गया कि समाधान पाने के लिए ऋषि-मुनि, महर्षि व्यास के पास पहुंचे। ऋषि-मुनि जब महर्षि के पास पहुंचे तो वो उस समय गंगा (Ganga) में स्नान कर रहे थे। ऋषि- मुनियों को देखते ही व्यास बोले, ‘कलियुग ही सर्वश्रेष्ठ है, शूद्र ही श्रेष्ठतम हैं।’ ये बोलते ही उन्होंने गंगा में एक और डुबकी लगाई और बोले, ‘साधु तो केवल स्त्रियां हैं और सबसे धन्य भी वही हैं।’ ऋषि- मुनियों ने महर्षि से इसे आम भाषा में समझाने के लिए कहा।
व्यासजी ने बताया, बिना स्वार्थ और भाव से जप, तप, यज्ञ, होम आदि पुण्यकर्म करने से जो फल दस वर्षों में सतयुग में प्राप्त होता है। वो फल त्रेता में केवल एक साल (One Year), द्वापर में एक माह (One Month) और कलिकाल में एक ही दिन (One Day) में सुलभ है। बता दें कि कलयुग को ये वरदान मिला है कि इस युग में केवल श्रीहरि का नाम जपने से ही जीव का कल्याण निश्चित हैं। कलयुग में मुक्ति पाने के लिए किसी भी अन्य साधन की जरुरत नहीं है। इसलिए कलयुग को श्रेष्ठ माना जाता हैं।
शूद्र (आर्यो के सूर्यवंशी समुदाय में से एक) को श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है क्योंकि अन्यजातियों को वेदों के अध्यन के लिए कठिन साधना एवं तपस्या करनी पड़ती है। लेकिन शूद्र ब्राह्मण की सेवा और आशीर्वाद से ये पुण्य बहुत आसानी से प्राप्त हो जाता हैं। इसी तरह जब स्त्रियां अपने पति की निष्ठाभाव से सेवा करती है तो उन्हें भी आसानी से पुण्य प्राप्त हो जाता है। इसलिए स्त्रियों को धन्य बताया गया हैं।
गौरतलब है कि इस प्रकार महर्षि ने ऋषि-मुनियों के विवाद को सुलझाया और कलयुग की श्रेष्ठता को सिद्ध किया।