1984 Anti-Sikh Riots : 1984 सिख विरोधी दंगों के मामलों की जांच और उसके निष्कर्षों ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में गृह मंत्रालय (MHA) से 2018 में जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में गठित विशेष जांच टीम (SIT) की सिफारिशों पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई है। यह याचिका उन सिफारिशों को लागू करने की मांग करती है, जो इन मामलों में न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए अहम मानी गई हैं।
जस्टिस ढींगरा कमेटी का कार्य
जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में SIT का गठन 2018 में किया गया था। इसका उद्देश्य 1984 सिख विरोधी दंगों के मामलों की फिर से जांच करना था, विशेष रूप से उन मामलों में जहां आरोपियों को बरी कर दिया गया था या जहां जांच में पर्याप्त प्रगति नहीं हुई थी। इस कमेटी ने लगभग 200 बंद किए गए मामलों की समीक्षा की और अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में यह सुझाया गया था कि इन मामलों में नए सिरे से जांच की आवश्यकता है और कई मामलों में दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई | 1984 Anti-Sikh Riots
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को सूचित किया कि जस्टिस ढींगरा कमेटी की कुछ सिफारिशों को लागू किया गया है। इसके अलावा, कुछ मामलों में अपील दायर की गई है और अन्य मामलों में भी कदम उठाए जा रहे हैं। अदालत ने इस मामले में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी है।
कैसे हुआ था 1984 सिख विरोधी दंगा ?
1984 के सिख विरोधी दंगे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद भड़के। दिल्ली सहित भारत के कई हिस्सों में सिख समुदाय के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।
नानावती आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इन दंगों में कुल 2,733 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश हत्याएं दिल्ली में हुई थीं। दिल्ली पुलिस ने कुल 587 प्राथमिकी दर्ज की थीं, लेकिन इनमें से कई मामलों में या तो कोई प्रगति नहीं हुई या आरोपी बरी हो गए। इन घटनाओं को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय के रूप में देखा जाता है।
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न्याय प्रक्रिया में चुनौतियां
1984 के दंगों के पीड़ित और उनके परिवार न्याय के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। कई मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में देरी, गवाहों पर दबाव, और सबूतों की कमी के कारण न्याय नहीं मिल सका। जस्टिस ढींगरा कमेटी का गठन इन्हीं चुनौतियों को दूर करने और न्याय प्रक्रिया को मजबूत करने के उद्देश्य से किया गया था।
कमेटी की सिफारिशें
जस्टिस ढींगरा कमेटी ने निम्नलिखित सिफारिशें की थीं:
- बंद मामलों की पुन: जांच: लगभग 200 मामलों को फिर से खोलने की सिफारिश की गई थी।
- दोषियों पर कठोर कार्रवाई: जिन मामलों में सबूत मौजूद हैं, उनमें आरोपियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाने चाहिए।
- गवाहों की सुरक्षा: गवाहों को धमकियों से बचाने के लिए ठोस उपाय किए जाने चाहिए।
- जवाबदेही तय करना: जांच में देरी और विफलताओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
वर्तमान स्थिति
सरकार ने कुछ मामलों में कदम उठाए हैं और कुछ सिफारिशों को लागू किया गया है। हालांकि, अभी भी कई मामलों में कार्यवाही लंबित है।
1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामले भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं। जस्टिस ढींगरा कमेटी की सिफारिशें इन मामलों में न्याय की प्रक्रिया को तेज करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगी गई स्टेटस रिपोर्ट यह स्पष्ट करेगी कि केंद्र सरकार ने इन सिफारिशों को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। न्याय की प्राप्ति के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इन मामलों में दोषियों को सजा दी जाए और पीड़ित परिवारों को न्याय मिले। यह भारत के लोकतांत्रिक और न्यायिक तंत्र की विश्वसनीयता के लिए भी आवश्यक है।