Owl Life Sacrifice on Diwali : देश में जहां दिवाली को रौशनी का पर्व माना जाता है व मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा-अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना की जाती हैं। घर की साफ-सफाई व साज-सजावट की जाती है ताकी माँ लक्ष्मी की कृपा हमारे घर पर बनी रहें तो वहीं आज भी हमारे देश में कई लोग ऐसे है जो धन की देवी को अपने घर में रोकने के लिए उल्लू की बलि देते हैं, जिसके चलते हर वर्ष कई उल्लुओं की जान जाती है। आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास के चलते, मनुष्य निर्दय होकर इस बेजुबान पक्षी की निर्मम हत्या करते हैं।
क्यों दी जाती है उल्लू की बलि
दरअसल, हमारे समाज में ये एक मिथ धारणा प्रचलित है कि अगर दिवाली पर उल्लू की बलि दी जाए तो घर में धन-संपदा में वृद्धि होती है और इसलिए कई लोग इस पावन पर्व पर अपने स्वार्थ के लिए उल्लुओं की बलि देते हैं। मान्यता है कि उल्लू पर सवार होकर माँ लक्ष्मी विचरण करती हैं और उल्लू की बलि देने से मां लक्ष्मी कहीं भी आ-जा सकने से लाचार हो जाती है और तब लाचार होकर घर में हमेशा के लिए वास करती हैं।
बता दें कि उल्लू को ऐसा प्राणी माना जाता है जो जीवित और मृत्यु के बाद लाभदायक होता है। उल्लू की बलि देने से पहले महीनाभर उसे घर में साथ रखा जाता है और दिवाली के दिन उसे मांस-मदिरा खिलाया जाता हैं व पूजा के बाद बलि दी जाती है। बलि के बाद उल्लू के शरीर के अंगों को अलग-अलग कर घर के विभिन्न हिस्सों में रखा जाता है जिससे समृद्धि हर तरफ से आए। कहा जाता हैं कि उल्लू की आंखों में सम्मोहित करने की ताकत होती है और इसलिए उल्लू की आंखें ऐसी जगह रखनी चाहिए जहां परिवार के सब लोग एक साथ बैठते हो व पैर तिजोरी में रखें जाते है।
लाखों में बेचे जाते है उल्लू
गौरतलब हैं कि दिवाली के आते ही उल्लू की डिमांड भी बड़ जाती हैं और पक्षी बेचने वाले इसके अवैध शिकार पर निकल पड़ते हैं। इस ख़ास पर्व पर एक उल्लू लगभग 10 हजार से लेकर लाखों में बेचा और ख़रीदा जाता है। यह सब तब किया जाता है जब भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत उल्लू संरक्षित पक्षियों में आता हैं। संरक्षित पक्षियों की सूची में उल्लू को प्रथम श्रेणी में शामिल किया गया है हालांकि पहले ये चतुर्थ श्रेणी में था। उल्लू को पकड़ने-बेचने पर तीन साल या उससे ज्यादा की सजा का नियम है लेकिन दिवाली के पावन पर्व पर इस प्रावधान की खूब धज्जियां उड़ाई जाती है।