Beauty tricks in Ancient time : सजना, सुंदर लगना और सोलह श्रंगार की अवधारणा दुनिया में प्राचीन काल से ही थी। माना जाता है कि मेकअप की शुरुआत सबसे पहले प्राचीन मिस्र में ही हुई थी। उस समय मिस्र की अभिजात्य वर्ग की महिलाएं रसायनों और अन्य उत्पादों से बने लेप को चेहरे पर रोजाना लगती थी। इसके अलावा महिलाएं सुंदर लगने के लिए हर समय सिर पर मुकुट धारण करती थी व उबटन के रूप में दूध और गुलाब जल का इस्तेमाल करती थी। मिस्र रानियां अपनी सुंदरता पर विशेष ध्यान देती थी। जैतून के तेल, इत्र और अलग-अलग तरह के मिट्टी से बने लेप का उपयोग किया जाता था। इसी के साथ दूध और गुलाब को मिलाकर एक ख़ास लेप बनाया जाता था, जो सुबह-शाम रानियां अपने चेहरे पर लगाती थी।
मगरमच्छ की लीद और गधे के दूध से बनता था फेसपैक
बता दें कि प्राचीन काल में ज्यादातर रानियां लम्बे बाल रखती थी, जिसमें रोजाना एक खास तरीके से वीथिकाएं गूथी जाती थी। आंखों में मोटा-मोटा काजल और होठों का खास मेकअप किया जाता था। इसके अलावा रोजाना अलग-अलग डिजाइन के आभूषण और वस्त्र धारण करती थी। उस समय रानियां फेसपैक के लिए मगरमच्छ की लीद और गधे के दूध के मिश्रण का इस्तेमाल करती थी। बहरहाल ठंड के समय लेप में इस्तेमाल होने वाली सामग्री गरमी में इस्तेमाल होने वाली सामग्री से एकदम अलग होती थी।
आर्सेनिक का करती थी सेवन
रानियां त्वचा की सफाई के लिए गौमूत्र का भी इस्तेमाल करती थी। इसके अलावा मुगलकाल में महिलाएं पान के पत्ते चबाती थी, उनका मानना था कि पान के पत्तों को चबाने से सौंदर्य बढ़ती है और होठ लाल व दांत साफ़ रहते है। मेकअप में शहद और जैतून के तेल का ख़ास इस्तेमाल किया जाता था। ब्रिटेन में महिलाएं चेहरे को निखारने के लिए कच्चे अंडे के सफेद हिस्से को लगाती थी।
एलिजाबेथ दौर की महिलाएं त्वचा पर निखार बनाए रखने के लिए, आर्सेनिक का सेवन करती थी। उनका मानना था कि इसका सेवन करने से उम्र कम होती है। बता दें कि आर्सेनिक, मानव शरीर में उपलब्ध आवश्यक एँजाइम्स पर नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है, जिसकी वजह से शरीर के बहुत से अंग काम करना बंद कर देते हैं और मनुष्य की मौत भी हो जाती है। इसी तरह उस समय महिलाएं खुशी-खुशी फीताकृमि (Tapeworms) को भी निगल जाती थी, उनका मानना था कि इसे खाने से फीताकृमि पेट में जाकर उनके द्वारा खाए गए ज्यादातर खाने का खा लेगा, जिससे वो पतली लगें।
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