दिल्ली HC ने DU के कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में नियुक्ति पर लगाई रोक, जानें पूरा मामला

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दिल्ली हाईकोर्ट ने 28 जुलाई, 2023 तक डीयू के कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज (CVS) में नियुक्ति पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने ये फैसला शिक्षण रोस्टर में व्यापक हेरफेर पर एक शिक्षक द्वारा याचिका दायर पर लिया गया। याचिका में दावा किया कि नियुक्तियों के दौरान उचित रोस्टर प्रणाली का पालन नहीं किया गया था। इस मामले में न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने आदेश दिया कि रोस्टर की जांच की जानी चाहिए और उच्च न्यायालय की मंजूरी के बिना कॉलेज कोई नियुक्ति नहीं कर सकता है।

याचिका में लगाए गए आरोप

रवींद्र सिंह कुशवाह ने अपनी याचिका में ये आरोप लगाया कि सामान्य वर्ग की एक सीट को आरक्षित श्रेणी के पद में बदल दिया गया था, जिसके बाद वह नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सके। याचिका में तर्क दिया गया है कि टीचिंग रोस्टर में “जानबूझकर हेरफेर किया गया है ताकि एडहॉक सहायक प्रोफेसरों की सेवाओं की मनमानी और गलत तरीके से समाप्ति के लिए जगह बनाई जा सके।” याचिका में कहा गया है, “इसके अलावा रोस्टर में हेरफेर से याचिकाकर्ता को पर्यटन विभाग में विज्ञापित रिक्तियों के लिए आवेदन करने का अवसर गंवाना पड़ा है, क्योंकि रोस्टर में इस तरह से हेरफेर किया गया है कि कोई भी पोस्ट अनारक्षित श्रेणी के लिए निर्धारित नहीं है।”

CVS शिक्षक संघ के अध्यक्ष कुमार आशुतोष इस बारे में बताते हैं कि हमारे पर्यटन विभाग में चार पद रिक्त थे, जिनमें से एक अनारक्षित था। जब पदों का विज्ञापन आया तो सभी पदों को आरक्षित पदों में बदल दिया गया। उन्होंने कहा कि इतिहास विभाग में भी एक एसटी पद को एक अनारक्षित पद में बदल दिया गया था और एसटी पद के खिलाफ पढ़ाने वाले एड हॉक शिक्षक ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। मामले में अदालत ने यह आदेश दिया है कि कुशवाहा को सुनवाई की अगली तारीख तक बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिए और कोर्ट की अनुमति के बिना भर्ती प्रक्रिया नहीं हो सकती है।

 प्रिंसिपल इंद्रजीत डागर ने क्या कहा? 

वहीं, मामले को लेकर सीवीएस के प्रिंसिपल इंद्रजीत डागर का कहना है कि तथ्यों को “गलत तरीके से प्रस्तुत” किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब 2019 में पदों का विज्ञापन दिया गया था, तब भी कोई अनारक्षित पद नहीं थे। कुल चार पद हैं और एक अनारक्षित पद है। पहले से ही एक स्थायी संकाय सदस्य है। वर्तमान में रिक्तियां केवल तीन आरक्षित पदों के लिए हैं। डागर ने कहा, “डीयू के नियमों के मुताबिक, एड हॉक नियुक्तियां चार महीने के लिए की जाती हैं और बिना नोटिस के सेवा समाप्त की जा सकती है। कार्यभार में बदलाव के कारण स्वीकृत पद भी बढ़ते या घटते रहते हैं और जब यह विशेष एड हॉक नियुक्ति की जाती है, तो हमने जो भी उपलब्ध था उसे नियुक्त किया।”

आपको बता दें कि प्रिंसिपल इंद्रजीत डागर की अवैध बहाली के खिलाफ भी हाईकोर्ट में तीन और याचिकाएं दायर की गई हैं। उन पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और इसके बीच कथित रूप से उन्हें जनवरी 2022 में जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया था, लेकिन फिर शासी निकाय के अध्यक्ष संगीत रागी द्वारा उन्हें बहाल कर दिया गया। कोर्ट ने इस संबंध में यूनिवर्सिटी को नोटिस भी जारी किया है।

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