Changing demography in Jharkhand: झारखंड में विधानसभा चुनावों के पहले चरण की वोटिंग हो चुकी है, और दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को होने वाला है। इस बीच, राज्य की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है—संथाल परगना और अन्य आदिवासी इलाकों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठ और बदलती डेमोग्राफी। बीजेपी ने इसे लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की हेमंत सोरेन सरकार पर तीखे आरोप लगाए हैं।
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Toggleसंथाल परगना में बदलती जनसांख्यिकी
केंद्र सरकार द्वारा झारखंड हाई कोर्ट में दायर हलफनामे के अनुसार, संथाल परगना के साहिबगंज, पाकुड़, गोड्डा, दुमका, देवघर और जामताड़ा जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्ज की गई है। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल रहा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या का स्वरूप तेजी से बदला है।
सांख्यिकी में बदलाव:
- साहिबगंज:
- 1961 में कुल जनसंख्या 4.14 लाख थी, जिसमें मुस्लिम आबादी 20% थी।
- 2011 में जनसंख्या बढ़कर 11.5 लाख हुई, जिसमें मुस्लिम आबादी 35% हो गई।
- 50 साल में मुस्लिम आबादी में 15% की वृद्धि दर्ज की गई।
- पाकुड़:
- 1961 में मुस्लिम आबादी 22% थी, जो 2011 में 36% तक पहुंच गई।
- संथाल परगना क्षेत्र:
- 1951 में हिंदू जनसंख्या 90% थी, जो 2011 में घटकर 68% रह गई।
- मुस्लिम आबादी 9% से बढ़कर 23% हो गई, जबकि ईसाई आबादी भी 1% से बढ़कर 4% हो गई।
- आदिवासी आबादी में 17% की गिरावट आई।
घुसपैठ का प्रभाव
इन आंकड़ों के आधार पर यह स्पष्ट है कि संथाल परगना में आदिवासी और हिंदू समुदायों की संख्या घट रही है, जबकि मुस्लिम और ईसाई समुदायों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। बीजेपी का आरोप है कि यह बदलाव बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण हुआ है।
- वोटर लिस्ट में बदलाव: साहिबगंज में 7,900 से अधिक बांग्लादेशियों के नाम हटाए गए।
- मदरसे: इन जिलों में मदरसों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
- स्थानीय संस्कृति: बांग्लादेश से आए लोगों की भाषा और पहनावे के कारण इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है।
सियासी महत्व
संथाल परगना और कोल्हान का चुनावी गणित:
- संथाल परगना:
- यहां लोकसभा की 3 और विधानसभा की 18 सीटें हैं।
- 2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने 14 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 4 सीटें मिली थीं।
- कोल्हान:
- इसमें 14 विधानसभा सीटें हैं।
- 2019 में बीजेपी को यहां एक भी सीट नहीं मिली थी।
बीजेपी इन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में घुसपैठ के मुद्दे को उठाकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
घुसपैठ के मुद्दे पर सियासी बयानबाजी
बीजेपी का कहना है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए “लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट” की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे स्थानीय युवतियों से विवाह कर यहां स्थायी रूप से बसने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, वोटर कार्ड और आधार कार्ड बनवाकर चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं।
वहीं, हेमंत सोरेन और कांग्रेस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए बीजेपी पर सांप्रदायिक माहौल खराब करने का आरोप लगाया है।
आदिवासी वोट बैंक पर नजर
झारखंड में आदिवासी वोटरों का चुनावी महत्व सबसे अधिक है। जेएमएम परंपरागत रूप से इस वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती है।
- बीजेपी ने इस बार बाबूलाल मरांडी को कमान देकर आदिवासियों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
- कोल्हान और संथाल परगना में आदिवासियों के बीच बीजेपी ने स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ाकर घुसपैठ और पहचान के मुद्दे को भुनाने का प्रयास किया है।
चुनावी नतीजों पर असर
घुसपैठ का मुद्दा और बदलती डेमोग्राफी झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में बड़ा मुद्दा बन सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी इस रणनीति से आदिवासी वोटरों में सेंध लगा पाएगी, या जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन अपनी पारंपरिक पकड़ बनाए रखेगा।
संथाल परगना और कोल्हान के चुनावी गणित में जनसांख्यिकी बदलाव और घुसपैठ का मुद्दा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आदिवासी पहचान और उनके अधिकारों का सवाल चुनाव में केंद्र में रहेगा। झारखंड का यह चुनाव राज्य की राजनीति में नए समीकरण तय कर सकता है।