VIVIBHA 2024: गुरुग्राम स्थित एसजीटी विश्वविद्यालय में भारतीय शिक्षण मंडल के ‘विविभा 2024: विजन फॉर विकसित भारत’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के अलावा नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. कैलाश सत्यार्थी भी पहुंचे। कैलाश सत्यार्थी ने विकसित भारत की संकल्पना को आत्मा, समाज और प्रकृति के संतुलित विकास से जोड़ा। साथ ही उन्होनें पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को खारिज करते हुए कहा कि भारत की जड़ों में निहित मूल्य और परंपराएं हमें वैश्विक दिशा देने की क्षमता प्रदान करती हैं।
कई प्रतिष्ठित अतिथियों ने कार्यक्रम में लिया भाग
इस तीन दिवसीय अखिल भारतीय शोधार्थी सम्मेलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और इसरो अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ समेत कई प्रतिष्ठित अतिथियों ने भाग लिया। सम्मेलन में भारतीय शिक्षण परंपरा और शोध की नई दिशाओं पर चर्चा हुई। डॉ. सत्यार्थी ने कहा कि भारत को विकास की परिभाषा और पैमानों के लिए किसी अन्य के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने भारतीय परंपराओं और वेदों में समाहित समानता, सामूहिकता और सार्वभौमिकता के संदेश को हमारी विकास अवधारणा की नींव बताया।
डॉ. सत्यार्थी ने “महायज्ञ” का उदाहरण देते हुए कहा कि जब समाज, राष्ट्र और मानवता के भले के लिए लोग एकत्रित होते हैं, तो यह भी एक यज्ञ है। इस आयोजन को उन्होंने “नए यज्ञ की शुरुआत” करार दिया।
डॉ. कैलाश सत्यार्थी ने इस बात पर दिया जोर
डॉ. सत्यार्थी ने जोर दिया कि विकास ऐसा होना चाहिए जो प्रकृति और मानवता के बीच सामंजस्य स्थापित करे। उन्होंने कहा कि भारत का डीएनए लूट-खसोट में नहीं, बल्कि हासिल चीजों को बिना अभिमान के लौटाने में विश्वास करता है। उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम की भावना को वास्तविकता में अपनाने पर जोर दिया और कहा कि भारत की भुजाएं इतनी विस्तृत हैं कि वह पूरे विश्व को अपने साथ जोड़ सकता है।
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