Friday, November 22, 2024
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India – Pakistan Partition 1947 : जानें क्या है उस मशहूर बग्घी की कहानी जिसको लेकर दोनों देशों के बीच विवाद उठ खड़ा हुआ था

India – Pakistan Partition 1947: 1947 में भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन न केवल जमीन का था बल्कि उससे भी अधिक था। यह बंटवारा सांस्कृतिक, आर्थिक, और ऐतिहासिक धरोहरों का भी था। इस विभाजन ने कई दिलचस्प कहानियों को जन्म दिया, जिनमें से एक बग्घी की कहानी है, जो आज भी इतिहास की एक महत्वपूर्ण धरोहर के रूप में जीवित है।

बंटवारे की प्रक्रिया और बग्घी का महत्व

जब 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो संपत्ति, सैन्य संसाधनों और अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओं का भी बंटवारा करना पड़ा। इस प्रक्रिया में एच. एम. पटेल भारत के प्रतिनिधि थे और पाकिस्तान की ओर से चौधरी मुहम्मद अली को चुना गया था। उन्होंने विभाजन के नियम और शर्तों को तय करने की जिम्मेदारी उठाई। विभाजन के दौरान, सेना, जमीन, सरकारी इमारतें, और अन्य वस्तुओं का बंटवारा हुआ। लेकिन गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स रेजीमेंट की मशहूर बग्घी को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ।

1947 के बंटवारे की कहानी, जिसने झेला उनकी जुबानी और कुछ यादें भारत-पाकिस्तान के लिए, देखे इस खास ख़बर में

यह बग्घी ब्रिटिश शासनकाल के दौरान वायसराय को मिली थी, और यह एक महत्वपूर्ण प्रतीक थी। इसके साथ जुड़ी हुई एक विरासत और शान थी, जिसे दोनों देश खोना नहीं चाहते थे। यह बग्घी सोने के पानी की परत से सजी हुई थी, और यह एक राजसी धरोहर थी। भारत और पाकिस्तान दोनों ही इसे अपने पास रखना चाहते थे, लेकिन अंततः इसका निर्णय एक टॉस के माध्यम से हुआ, जिसमें भारत विजयी रहा और यह बग्घी भारत के हिस्से में आई।

बग्घी का उपयोग और उसका महत्व |India – Pakistan Partition 1947

स्वतंत्रता के बाद, यह बग्घी भारतीय राष्ट्रपति की शाही सवारी के रूप में उपयोग की जाने लगी। इस बग्घी का पहला उपयोग भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर किया था। इसके बाद यह परंपरा बन गई कि विशेष अवसरों पर राष्ट्रपति इस बग्घी का उपयोग करेंगे।

शुरुआती वर्षों में, भारतीय राष्ट्रपति विभिन्न समारोहों में इस बग्घी से ही आते थे। 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन के आसपास भी इसी बग्घी का उपयोग होता था। यह बग्घी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष के सम्मान और उनकी शान का प्रतीक थी।

बग्घी का कम होना और पुनः उपयोग में आना | India – Pakistan Partition 1947

1970 और 1980 के दशक में, सुरक्षा कारणों से बग्घी का उपयोग कम हो गया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, सुरक्षा की दृष्टि से राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ गाड़ियों में चलने लगे। इसके परिणामस्वरूप बग्घी का उपयोग बंद कर दिया गया।

हालांकि, 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी के उपयोग की परंपरा को पुनर्जीवित किया। उन्होंने बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम के दौरान इस बग्घी का उपयोग किया, और इसके बाद से यह परंपरा पुनः स्थापित हो गई।

बग्घी का चयन विशेष रूप से प्रशिक्षित घोड़ों द्वारा किया जाता है। पहले इसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों द्वारा खींचा जाता था, लेकिन अब इसे चार घोड़ों द्वारा खींचा जाता है।

2024 गणतंत्र दिवस परेड में बग्घी की वापसी

बग्घी ने 1984 के बाद से गणतंत्र दिवस परेड में कोई भूमिका नहीं निभाई थी। 40 वर्षों बाद, 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस बग्घी का उपयोग किया, जिसमें वे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ कर्तव्यपथ पर पहुंची। यह वापसी बग्घी की महत्ता को पुनः स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण कदम था।

यह बग्घी न केवल भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण धरोहर है, बल्कि यह विभाजन के समय के संघर्ष और उसके परिणामस्वरूप उभरने वाली नई भारतीय पहचान का भी प्रतीक है। इसका उपयोग आज भी उस समय के संघर्ष और भारत के विजयी इतिहास की याद दिलाता है।

इस बग्घी की कहानी यह दिखाती है कि कैसे विभाजन के दौरान भी कुछ वस्तुएं और धरोहरें ऐसी थीं, जिनका महत्व इतना अधिक था कि उनके बंटवारे पर भी गहन विचार-विमर्श हुआ। इस बग्घी का उपयोग भारतीय इतिहास के विशेष अवसरों पर किया जाना न केवल एक परंपरा है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और उसकी ऐतिहासिक यात्रा का एक प्रतीक भी है।

इस बग्घी की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि इतिहास के पन्नों में छिपी हर छोटी-बड़ी घटना का अपना महत्व होता है। यह केवल एक साधारण बग्घी नहीं है, बल्कि यह उस दौर के संघर्ष, जीत, और नए भारत के निर्माण की एक महत्वपूर्ण धरोहर है।

 

 

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