दिल्ली की केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के नियंत्रण को लेकर टकराव की स्थिति बनी रहती है। बीते दिन ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग से जुड़े अधिकार पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि चुनी हुई सरकार को ही फैसले लेने का अधिकार होना चाहिए।
‘ट्रांसफर नहीं करने दे रही केंद्र’
हालांकि कोर्ट के इस फैसले के बाद भी दिल्ली में अधिकारों को लेकर विवाद थमा नहीं है। दरअसल, शीर्ष अदालत के फैसले के अगले दिन ही केजरीवाल सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सरकार ने आरोप लगाया है कि केंद्र उसे अधिकारियों (सचिव) का ट्रांसफर नहीं करने दे रहा है। दिल्ली सरकार ने कहा है कि केंद्र सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे का ट्रांसफर नहीं कर रहा है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया। सीजीआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वो अगले हफ्ते बेंच का गठन करेंगे।
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फैसले के बाद पहले ही ट्रांसफर पर विवाद
गौरतलब है कि गुरुवार को दिल्ली सरकार ने ट्रांसफर-पोस्टिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही सेवा विभाग के सचिव आशीष मोरे को पद से हटा दिया था। अदालत के फैसले से पहले सेवा विभाग दिल्ली के उपराज्यपाल के नियंत्रण में था। हालांकि जब सुप्रीम कोर्ट ने अधिकार तय कर दिए तो इसके कुछ घंटों बाद ही केजरीवाल सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए आशीष मोरे की जगह जल बोर्ड के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एके सिंह को जिम्मेदारी सौंपने का फैसला लिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार द्वारा किए गए पहले ही ट्रांसफर पर विवाद हो गया है। दरअसल, बताया जा रहाहै कि मोरे के ट्रांसफर को एलजी दफ्तर ने अवैध बताया। खबरों की मानें तो एलजी दफ्तर ने कहा है कि मोरे के ट्रांसफर को लेकर उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। सूत्रों का कहना है कि एक अधिकारी का तबादला कार्यकाल पूरा होने से पहले केवल सिविल सेवा बोर्ड में किया जा सकता है। यही कारण है कि इस ट्रांसफर को लेकर केजरीवाल सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले ही दिन वहां दोबारा पहुंच गई।