रंगा-बिल्ला जिनको फांसी पर लटकाने का सबको था इंतज़ार …..
रंगा और बिल्ला यह दोनों वह खूंखार अपराधी थे जिन्हें नेवी अफसर के बच्चों के साथ रेप करके उन्हें मारने की जुलुम में फांसी दी गई थी और इन दोनों की फांसी में से एक की फांसी ने सबको चौका दिया था ।
तिहाड़ जेल में कई वर्ष तक कार्यरत रहे सुनील गुप्ता ने ब्लैक वारंट नामक अपनी किताब में लिखा है कि तिहाड़ में वर्ष 1982 में रंगा और बिल्ला को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया था।
फंदे पर लटकाने के दो घंटे बाद जब चिकित्सक फांसी घर में यह जांच करने गए कि दोनों की मौत हुई या नहीं तो पाया गया कि रंगा की नाड़ी (पल्स) चल रही थी। बाद में रंगा के फंदे को नीचे से खींचा गया और उसकी मौत हुई।
हरि नगर के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में फोरेंसिक विभाग के अध्यक्ष डॉ.बीएन मिश्र बताते हैं कि फांसी के दौरान गर्दन की हड्डियों में अचानक झटका लगता है। झटके से गर्दन की सात में से एक हड्डी, जिसे सेकेंड वर्टिब्रा कहा जाता है, उसमें से ऑडोंट्वाइड प्रोसेस नामक हड्डी निकलकर स्पाइनल कॉर्ड में धंस जाती है। इसके धंसते ही शरीर न्यूरोलॉजिकल शॉक का शिकार हो जाता है और तुरंत शरीर की नियंत्रण क्षमता समाप्त हो जाती है। इससे उसकी तुरंत मौत हो जाती है। यह पूरी प्रक्रिया चंद सेकेंड में ही हो जाती है।
डॉ. मिश्र बताते हैं कि फांसी की सजा से हुई मौत को फोरेंसिक भाषा में ज्यूडिशियल हैंगिंग कहा जाता है, वहीं खुदकशी के मामले में फांसी लगाने से जो मौत होती है उसमें अधिकांश मामलों में गर्दन व सांस की नली दबने या दोनों के एक साथ दबने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह बंद हो जाता है और दो से तीन मिनट में मौत हो जाती है। यदि हत्या के इरादे से किसी को फंदे से लटकाया जाता है तो होमिसाइडल हैंगिंग कहा जाता है। वहीं कुछ मामलों में दुर्घटनावश भी रस्सी या तार में गर्दन के उलझने से मौत हो जाती है। सभी मामलों के अपने-अपने लक्षण हैं।
फोटो स्त्रोत : गूगल
स्त्रोत : वेब