हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बनखेड़ी गांव में माँ बगलामुखी शक्तिपीठ है जहाँ शत्रुनाशिनी यज्ञ कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में से आठवां स्थान प्राप्त है। वे रावण की ईष्ट देवी थीं।
मंदिर का इतिहास
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, मां बगलामुखी की आराधना सर्वप्रथम ब्रह्मा विष्णु ने की थी। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया। उसे वरदान प्राप्त था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते। मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और बह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया।
त्रेतायुग में जब भगवान राम, रावण से युद्ध करने जा रहे थे। तो, उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। वहीं उन्हें रावण पर जीत हासिल हुई थी। बगलामुखी मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों के द्वारा अज्ञातवास् के दौरान की गई थी। भारत में माँ बगलामुखी के तीन प्रमुख मंदिर हैं , जिनमे दतिया (मध्य प्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) और नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) में हैं, जिन्हे सिद्धपीठ कहा जाता है।
पीला रंग
मां को पीतांबरी भी कहा जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर हर कुछ पीला ही होता है। मां बगलामुखी का ये मंदिर भी पीले रंग का है। बल्कि, इस मंदिर की हर चीज यहां तक की माता के वस्त्र से लेकर उन्हें लगने वाले भोग तक हर चीज पीले रंग की होती है। माना जाता है कि मां बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके उनके शत्रुओं और उनकी बुरी ताकतों का नाश करतीं है। बता दें, कि इस मंदिर में मुकदमों, विवादों में फंसे लोगों के अलावा बड़े-बड़े नेता, महानेता भी विशेष पूजा (mata baglamukhi temple) करने के लिए पहुंचते हैं।
यज्ञ में लाल मिर्च की आहुति
देवी बगलामुखी में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है। कांगड़ा जिले में स्थित इस मंदिर में शत्रुनाशिनी और वाकसिद्धि यज्ञ होते हैं। ये यज्ञ करने से शत्रु को परास्त करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही लोगों की हर मनोकामना भी पूरी होती है। शत्रु को परास्त करने के लिए किए जाने वाले इन यज्ञ में लाल मिर्च की आहुति (baglamukhi temple hawan) दी जाती है।