बाल श्रम के खिलाफ होने होगा एकजुट: जब तक मुखर नहीं होगा समाज, बात नहीं बनेगी

child labour

“बाल श्रम और बाल मजदूरी एक व्यापार है,
बचपन में खेलना-पढ़ना बच्चों का अधिकार है।”

भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा हैं। स्वतंत्र होने के बाद भारत ने कई बड़ी बड़ी उपलब्धियां, कई बड़े मुकाम हासिल किए हैं। आज हम भारत को एक नए भारत की तरह देखते हैं, जिसे न्यू इंडिया भी कहते हैं। न्यू इंडिया में वैसे तो भारत आज नई ऊंचाईयों को छू रहा हैं, लेकिन इस नए भारत में भी ऐसी कई कुरीतियां हैं जिसका आज भी हम सामना कर रहे हैं। इसी में से एक हैं बाल श्रम या बाल मजदूरी।

अगर हम किसी भी व्यक्ति से पूछें कि उनके जीवन का सबसे अच्छा समय कौन-सा है? तो अधिकतर लोगों का जवाब बचपन ही होगा। बचपन पूरे जीवन का सबसे अच्छा और सुगम पल होता है। यह ऐसा वक्त होता है जब बच्चों को किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं या फिक्र नहीं होती है और वो अपने जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं। लेकिन हर किसी का बचपन एक समान नहीं होता। कुछ बच्चों पर कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का बोझ आ जाता है।

लाचारी और गरीबी से त्रस्त बच्चों के बचपन को बाल श्रम की ओर धकेल देती हैं। बाल श्रम से बच्चों को मुक्त कराने के लिए प्रयास तो भरपूर किए जाते हैं। दुनियाभर के बच्चों को बाल मजदूरी से छुटकारा मिले, इसके लिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस भी हर साल 12 जून को मनाया जाता है। जिससे लोगों में बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता बढ़े। इन प्रयासों के बाद आज भी स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया है। दुनियाभर में बाल मजदूरी की स्थिति बेहद ही खराब हैं। तमाम नियमों-कायदों और कानून को ताक पर रहकर आज भी बाल मजदूरी चोरी छिपे चली आ रही हैं।

दर्शकों रिपोर्ट्स बताती हैं कि दुनिया का हर दसवां बच्चा किसी न किसी तरह की मजदूरी करने पर मजबूर है। आंकड़ों में देखें तो दुनिया में 16 करोड़ बच्चे मजदूरी करते हैं। इनमें तकरीबन 6 करोड़ लड़कियां और दस करोड़ लड़के शामिल हैं। वहीं बात भारत की करें तो देश में बाल श्रम को लेकर स्थिति काफी खराब है। वैसे तो भारत में बाल श्रम की स्थिति को लेकर कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है। ऐसे में साल 2011 जनगणना के आंकड़ों पर ही नजर डाल लेते हैं। भारत में 5 से 14 साल तक के 25.96 बच्चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रमिक है। और करीब 43 लाख से अधिक बाल मजदूरी करते पाए गए थे। UNICEF के अनुसार यह आंकड़ा दुनिया के बाल मजदूरों का 12 प्रतिशत भारत का ही है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश ये पांच राज्य ऐसे हैं, जहां सबसे अधिक बाल श्रमिक पाए जाते हैं।

दर्शकों बाल मजदूरी से बच्चों को निजात दिलाने के लिए कई लोगों ने खूब प्रयास किए। इनमें से ही एक नाम हैं, कैलाश सत्यार्थी। हजारों बच्चों को मजदूरी से मुक्ति दिलाने में कैलाश सत्यार्थी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बाल श्रम के खिलाफ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ भी चलाया। कैलाश सत्यार्थी के इस आंदोलन की धमक पूरी दुनिया में दिखाई दी। बताया जाता है कि कैलाश सत्यार्थी ने 90 हजार से भी ज्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी और गुलामी की जिंदगी से मुक्त कराया है। इनके इन्हीं नेक कामों के चलते साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

दर्शकों इन सबसे ये तो समझ आ जाता है कि बाल मजदूरी आज भी एक गंभीर समस्या में से है। ऐसे समय में हम जब न्यू इंडिया की बात करते हैं, विकसित भारत की बात करते हैं, तो ऐसे ये भी जरूरी हो जाता है कि ऐसी कुरीतियों को जड़ से खत्म किया जाए। बच्चे भारत का भविष्य हैं और इस भविष्य को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हम सबकी हैं। अगर हम सब मिलकर प्रयास करें, तो वो दिन भी जरूर आएगा जब बाल श्रम से हमें छुटकारा मिल जाएगा। अपने बच्चों को, अपने भविष्य को सुरक्षित रखने और उज्जवल बनाने की जिम्मेदारी हम सभी को लेनी होगी। जब तक समाज मुखर नहीं होगा, बात नहीं बनेगी।

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